दर्शन

सोच का शोधन – प्रथम कड़ी


भूमिका

सच्चे लोग जब निर्माण करते हैँ, किसी भी प्रकार का ही क्यों ना हो, बड़ी ही मासूमियत से बिना किसी आकांक्षा के, निरंतर जुटे रहते हैँ वो |फिर एक दिन एक बुरा प्राणी- झूठ, लालसा, ईर्ष्या से भरे हुए व्यक्तित्व वाला, एक पल में उसका विनाश कर देता है |


परिणाम

हताशा, पीड़ा? नहीं, बिलकुल भी नहीं |


सार

बुराई तबाही मचा सकती है, एक झटके में सब ख़तम कर सकती है, आपकी बनायी हुई रचना या कला को नष्ट कर सकती है, मगर अच्छाई नहीं छीन सकती आपसे, ना ही आपकी कला छीन सकती है |


प्रेरक भाव

कला के भौतिक पतन से, कला का कभी अन्त नहीं होगा, बल्कि एक नई शक्ति के साथ, फिर से एक निर्माण होगा, कला का उज्ज्वलित उदय होगा, कलाकार का भव्य उत्थान होगा |


©प्रदीप्ति

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