एक नन्ही सी चिड़िया की सुबह |

भोर की ये बेला बड़ी सुहानी,
भीनी भीनी सी बयार की ये रवानी,
बरामदे में शुरू होती किरणों की नादानी,
अंगड़ाई लेती हुई उठती एक नन्ही सी चिड़िया दीवानी,
लेहलहाती अपने उलझे उलझे पँखों को ,
और स्वाश भारती उड़ान से पहले,
झूमती इस कदर डाल डाल पर,
पुकारते हुए एक ही स्वर में,
ना जाने कौनसी बोली में,
ज़मीन पे उतरकर ढूँढती खाना,
पैनी सी चोंच से चुगती दाना दाना,
फिर उड़ती जल की खोज में,
किसी टूटे मटके या बहते नल के पास,
रुक जाती कुछ देर वहीं,
और भुजाती अपनी प्यास,
फैलाती उन पँखों को फिर से,
इस बार एक ऊँची उड़ान के लिए,
नीले सुनहरे आसमान की ओर,
धीरे धीरे ओझल हो जाती,
नज़रों के दायरे से पारे,दूर गगन में कहीँ |
चिड़िया : जीवन : सुबह