शाम का समय हमेशा एक अलग ही आभास लेके आता है | कुछ छूटता चला जाता है, कुछ मिलने लगता है | मन बेचैन होता है और दिल शरारती | असमंजस सी बनी रहती है | एक अनोखी सी असमंजस |

बादलों ने फिर एक शरारत की,
खेल आँख मिचोली सूरज संग,
उजागर कीए दबे दबे कई अरमान,
इस दिल – ए – नादान की अधूरी चाहत की,
लगा देखकर इस धुंदले से नज़ारे को,
जैसे कोई प्रेम मिलाप हुआ हो अभी,
बस घुलता जा रहा हो सूरज यूँही ,
इन घने बादलों में कहीँ,
छोड़कर अपना सुनहरा चमकता रंग,
इन फिँकें नीले बादलों में कहीँ,
फिर धीरे धीरे श्याम रंग में रम रहा हो,
इन गहरे देह के बादलों में कहीँ |
लगता है जैसे,
ये मिलन है एक समर्पण का इस सूरज के,
इन गोधुली के बादलों में कहीँ |
बादल : सूरज : प्रेम