सावन का मदमस्त मौसम,
धुंध से भरा हुआ ये समा ,
मगर फिर भी,
कोरी सी इस सुबह में ,
इमामदस्ते की वो गूँजती सी आवाज़,
कुटती हुई अदरक की,
महकती हुई ताज़गी,
सर सर करता पानी उस पतीले में,
उबाल आता हुआ वो गेरुआ रंग,
गाढ़ा होता धीमी आँच पर,
छलनी से प्याली में गिरती हुई वो धारा,
तैयार है पेश होने को,
करारी मट्ठी या कुरकुरे पकौड़ों के साथ,
छोटी छोटी चुस्कियों,
और लम्बी लम्बी बातों के साथ,
मिट्टी के कुल्हड़ में,
बारिश की बूँदों के साथ,
और मेरा यूँ,
लुत्फ़ उठाना इस एहसास का |
किसीने सच ही कहा है,
चाय की बात ही निराली है |
चाय : बारिश : लुत्फ़