सावन में जब जब मेघ बरसते हैँ,
नैनों के समंदर में आकर बसते हैँ,
वो अधूरे से ख्वाब,
जो अब लहरों की तरह उचकते हैँ,
ज़िन्दगी की नाव इन्हीं पर चलती है,
कभी हिलती, कभी उछलती,
कभी झूलती, कभी सँभलती,
मंज़िल की चाह में हर तूफ़ान से लड़ती |
सावन
सावन में जब जब मेघ बरसते हैँ,
नैनों के समंदर में आकर बसते हैँ,
वो अधूरे से ख्वाब,
जो अब लहरों की तरह उचकते हैँ,
ज़िन्दगी की नाव इन्हीं पर चलती है,
कभी हिलती, कभी उछलती,
कभी झूलती, कभी सँभलती,
मंज़िल की चाह में हर तूफ़ान से लड़ती |
सावन