ना जाने कितने ही चेहरे,
ना जाने कितनी ही पहचान हैं,
इस दुनिया के रंगमंच पर,
ना जाने हर किरदार,
पहनता है कितने ही मुखौटे |
कभी मुखौटा लहराती ख़ुशी का,
भीतर अपने ग़म का सागर लिए,
कभी मुखौटा ग़म के बादल का,
बिन अश्कों की बारिश लिए,
उसी मुखौटे से –
किसीके सामने हँसता है,
किसीके सामने रोता है,
किसीसे मुँह फेरता है,
किसीकी ओर ताँकता है,
कभी आक्रोश में भी ख़ामोशी लिए,
कभी प्रेम में अविरल बोलता हुआ,
कभी निराशा में कोरे लब लिए,
कभी उम्मीद में जगमगाती मुस्कान लिए |
हर इंसान पहनता मुखौटे हज़ार,
कुछ बदलते हैं पल पल,
तो कुछ उम्र भर भी नहीं,
कुछ अपनों के लिए,
तो कुछ होते गैरों के लिए,
कुछ सिर्फ़ एक सच के लिए,
तो कुछ हर तरह के झूठ के लिए |
Category: दर्शन
सन्देश

बादल के लिफ़ाफ़े में छुपाकर,
आज रोशनी भेजी है,
इस सूने तन्हा आसमान ने |
और डाकिया बनी है,
मदमस्त सी ये फ़िज़ा,
ताकि मीलों के ये फ़ासले,
आसानी से तय हो सके,
मगर शुल्क लगाया इस मौसम ने,
कुछ हिस्सेदारी अपनी भी माँगी,
ले ली कुछ किरणें फिर,
और बाकी वहीं रहने दी |
इस प्यारी सी सौगात की,
अभिग्राही बनी है ये धरा,
जो इस सन्देश को पाकर,
प्रज्वलित हो उठी,
स्वर्णिम सी हया लिए |
अवशेष

अवशेष
एक अस्तित्व था,
जिसका
आकार भी,
रूप भी,
छवि भी,
औचित्य भी,
जो
काल बध्य होकर,
पूर्ण था,
मगर
क्षण क्षण घटता गया,
उसका आकार,
उसका रूप भी,
उसकी छवि,
उसका औचित्य भी,
और आज जो प्रत्यक्ष है,
वो सिर्फ़ अवशेष हैं,
अधूरी कहानी से,
किसीके इतिहास के,
जो सिर्फ़ तर्क वितर्क,
और अनुमान के दायरे में,
सीमित रहकर,
एक शोध का विषय बन जाएँगे,
मगर
क्या कभी भी,
इस अवशेष का,
सत्य हम जान पाएँगे?
Shadow

A momentary truth,
Of an eternal reality,
And a constant juggle,
Between perception and memory.
A shadow gives a glimpse,
Of the fleeting nature,
Of this existence,
Nothing remains forever,
In the limited domain,
Of this physical perception,
Yet its essence stays,
In some form or the other,
In the boundless realm,
Of this metaphysical memory.
वक़्त

वक़्त पानी सा बहता गया,
जीवन की नाव चलती गयी,
कई छोर छूटते गए,
किनारे भी धुंदले होते गए,
और अब ये मंज़र है,
कि गहराई रास आने लगी है,
अब ना किसी छोर की तमन्ना,
ना ही किसी किनारे की आस बची है |
सड़क

रोज़ गुज़रते हैं यहाँ से,
भोर के ख़ुशनुमा ख़्वाब कई ,
दोपहर की उजली उजली सी ये उमंग,
साँझ की अचल निराशा,
और रजनी का गहरा चिंतन भी |
हर उम्र यहाँ ठहरती है,
अपने अपने हिसाब से,
फलों की फेरी लगाता वो नौजवान,
करता उम्मीद दो रोटी की,
सुबह की बस का इंतज़ार करता,
वो छोटा सा बच्चा,
मिलने को उत्सुक अपने दोस्तों से,
साइकिल पर कॉलेज जाते,
दोस्त यार कई,
बेफ़िक्र दुनिया की परेशानियों से,
स्कूटर पर दफ़्तर जाते वो अंकल,
देने एक सुरक्षित जीवन,
अपने परिवार को,
यूँही पैदल चलती वो गृहणी,
हाथ में सब्ज़ी का थैला लिए,
गृहस्ती की ज़िम्मेदारी निभाती हुई,
लाठी संग हौले हौले चलती,
दादा नाना की ये टोली,
करने सैर और बात चीत |
कोई यहाँ उम्मीद छोड़ जाता है,
कोई थकान और शिकन,
कोई यहाँ आने वाले वक़्त की ख्वाहिशें,
कोई बीते हुए पलों की रंजिशे |
कभी यहाँ जश्न होता है,
कभी शोक और मौन भी,
कभी यहाँ काफिले निकलते हैं,
कभी सुनसान आहटें भी,
कभी यहाँ खिलती हैं मुस्कान,
कभी झड़ती मुरझाए साँसें भी,
सब कुछ यहीं होता है,
हर रोज़, हर पल,
यूँही ये सड़क बन जाती है,
एक अहम् हिस्सा,
सबके जीवन का |
आग
एक धुआँ आतिश का,
एक सलील का,
एक सौहर्द देता,
एक ज़ख्म,
एक प्रेमाग्नि जैसा,
एक क्रोध की ज्वाला,
दोनों ही इस हृदय की उत्पत्ति हैं |

दर्शन
अज्ञानता भावहीन है,
ज्ञात होना भावपूर्ण,
प्रथम हैं इस श्रेणी में,
भाव शंका के, भय के,
एवं आश्चर्य के |
बढ़ती तृष्णा भी है,
और असमंजस भी |
अगर असमंजस विजयी हुई,
तो भय प्रबल होता जाएगा,
अगर तृष्णा विजयी हो जाए,
तो फिर ये भाव परिवर्तित होते हैं,
स्पष्टता में, निर्भीकता में,
और धीरे धीरे व्यक्ति,
संभाव की स्तिथि तक पहुँच जाता है,
ये सफ़र ज्ञात से बोध का है |
स्वीकृति

तालिका की सतह पर,ये हल्की गहरी रेखाएँ,कोई लम्बी, कोई छोटी,कोई पतली,कोई मोटी,कहीँ कटी,कहीँ रुकी,कहीँ बँधी,कहीँ खुली,कहीँ उठी,कहीँ झुकी,कहीँ दौड़ती,कहीँ लहराती,कहीँ मिलती,कहीँ जुदा होती,कहीँ चिन्ह हैँ,कहीँ दाग़ हैँ,कुछ मिटा सा है,कुछ छुपा सा है,कुछ बदलता है,कुछ स्थायी है,ना जाने क्या राज़ है इनमें,ना जाने क्या खुलासे हैँ,ना जाने क्या बातें हैँ,ना जाने क्या किस्से हैँ |जो भी है,वो यहीं है,इन्हीं रेखाओं में,भूत,वर्तमान, और भविश्य भी,काल,और पल भी,सम्पूर्ण,और अधूरा भी |ये स्वीकृति है,इस भाग्य की,कर्म की,और कारण की,प्रत्यक्ष के प्रमाण है,तर्क के विज्ञान है,विश्वास की,शंका की,उम्मीद की,हताशा की,वेदना की,संवेदना की,लाभ की,हानि की,स्मृति की,कल्पना की,इस जीवन के-क्षणभंगूर रूप की,स्वीकृति है |
ग़म

यूँ तो ज़िन्दगी में,
हर जज़्बात मौजूद है,
मगर ग़म की बात करें तो,
कोई रहकर देता है,
कोई जाकर,
कोई कहकर दे जाता है,
कोई चुप रहकर,
कोई यकीन के नक़ाब में,
कोई फ़रेब के खुलासे में,
कोई झूठ के लिबास में,
कोई सच के एहसास में,
कोई करीबी होकर,
कोई दूरी बनाकर,
कोई प्यार करके,
कोई वार करके,
कोई अपना बनके,
कोई अनजाना बनके,
कोई क्षण भर ही,
कोई ताउम्र तक,
ये ग़म दे जाता है |
वो ग़म फिर,
कभी बहता है,
इन अश्कों से,
किसी सैलाब की तरह,
कभी भड़कता है,
इन नैनों में,
किसी लावा की तरह,
कभी गरजता है,
इन लबों से,
किसी तूफ़ानी बादल की तरह,
कभी ठहरता है,
इस ललाट पर,
किसी गहरी निशा की तरह,
कभी चुभता है,
इस देह में,
किसी रेगिस्तानी शूल की तरह,
कभी नज़र आता है,
एक प्रचण्ड अस्तित्व सा,
कभी ओझल हो जाता है,
किसी साये की तरह |
ग़म : ज़िन्दगी : जज़्बात