Mythology, philosophy, Spiritual

सिया के राम

विरह के ताप में,
प्रेमाग्नि प्रज्वलित हुई,
और
ह्रदयों को सौहर्द मिलता रहा |
सिया की गरिमा की रक्षा,
राम के शौर्य की परीक्षा,
दोनों ही इस अग्नि ने की |
और प्रदान हुई,
तिमिर बेला से आतंरिक दृष्टि,
और
इस व्याकुल मन को संतुष्टि |
प्रेमाग्नि ने आत्मबल दिया,
हर शंका का हल दिया,
सिया और राम के,
मिलन के मार्ग बनते गए,
साथी और सारथी दोनों ही,
इस मार्ग पर जुड़ते गए |
नियति का इस तरह से न्याय हुआ,
सियाराम का ये मिलन,
प्रेम का पूर्ण अभिप्राय हुआ |
समर्पण सत्य के प्रति,
त्याग भौतिक तृष्णाओं का,
नियंत्रण मानवीय विकारों का,
धैर्य प्रतिकूल परिस्थितियों में,
विश्वास काल के परिवर्तन में,
पावनता प्रेम भाव में,
करुणा हृदय में,
कर्मठता धर्म के उत्तरदायित्व की,
पराक्रम क्षत्रिय सा,
राम के व्यक्तित्व में,
प्रचण्ड रूप से उजागर हुआ,
और
इस तरह काम आई,
ये प्रेमाग्नि,
सिया के मान की रक्षा के,
महा युद्ध में,
जहाँ
बल और बुद्धि का,
अनूठा संतुलन लिए,
राम ने पराजित किया,
धर्म और न्याय के दायरे में,
नियति का अभय रूप बनकर,
रावण के
इस लोभ को,
अनगिनत विकारों को,
अहंकार को,
दुर्व्यहार को,
और
पा लिया अनन्त के लिए,
इस प्रेम को,
सिया वर राम के रूप में |

प्रदीप्ति

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धारा


जल के प्रवाह अनेक,
कभी समतल शालीन स्थिर,
एक ताल की तरह,
कभी चँचल चहकता हुआ,
एक नादान सी नदिया की तरह,
कभी प्रचण्ड प्रबल रूप लिए,
समुन्दर की लहरों की तरह,
कभी कल कल गाता गीत कोई,
एक झरने की तरह |
कभी एक लकीर सी धारा बन जाए,
कभी एक टेढ़ा मेढ़ा किनारा बन जाए,
कभी मीलों तक यूँ फैलता हुआ,
किसी क्षितिज की तलाश में,
कभी ओक भर में यूँ समाता हुआ,
किसी तृष्णा तृप्ति की आस में,
कभी ये एक फुहार सा,
तो कभी एक बौछार सा,
कभी ये बूँद बूँद सा,
तो कभी ये कतरा कतरा सा |
जल के प्रवाह हैं कई,
हर प्रवाह है निराला,
कभी स्रोत को छोड़ता,
कभी गंतव्य को ढूँढता,
कभी रुकता,
कभी ठहरता,
कभी मुड़ता,
कभी घूमता,
कभी गिरता,
कभी उछलता,
कभी बहता,
कभी लेहलहता,
सावन में बरसता हुआ,
बसंत में पिघलता हुआ,
ग्रीष्म में उबलता हुआ,
शीत में जमता हुआ |

प्रवाह : धारा : जल

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अष्ठसिद्धि- दूसरी सिद्धि- महिमा

सिद्ध होने का तात्पर्य है–स्वयं की सक्षमता को पूर्ण रूप से समझकर उसका उपयोग करना | अष्ठ सिद्धि वर्णित हैँ हमारे पौराणिक शास्त्रों में |इनमें दूसरी सिद्धि है महिमा सिद्धि जिसका अर्थ है स्वयं के अंदर के विस्तार गुण का आभास होना | ये आभास वाणी में हो सकता है या काया में | आभास मात्र से इस सिद्धि की प्रबलता का बोध हो जाता है, और मनुष्य इसका सदुपयोग करना निरंतर प्रयास से ही सीख पाता है |

अष्ठ सिद्धि: दर्शन: महिमा

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Navratri – नौवी रात – माँ सिद्धिदात्री

आज की काव्यांजलि माँ सिद्धिदात्री को अर्पित |

माँ सिद्धिदात्री

सर्व सिद्धि प्राप्त जिसे, 

सदैव हँसमुख और सौम्य जो, 

श्वेत वस्त्र, कमल पर विराजमान, 

शिव को अर्धनारीश्वर बनाने वाली, 

भक्तों को कार्यरत रहने की, 

अमूल्य सीख सिखाने वाली, 

एकाग्रता और समर्पण से, 

कर्म करने का ज्ञान देने वाली, 

माँ  सिद्धिदात्री को, 

मेरा शत शत नमन |

नवरात्री : सिद्धि : सिद्धिदात्री