
इश्क़ मुश्किल ना था कभी,
हालात थे,
किस्मत भी बड़ी पेचीदा निकली,
इंसान से इंसान की मुलाक़ात तो करा देती है,
जज़्बातों की लौ भी जला देती है,
मगर ना जाने क्यूँ,
एक रोज़
खुदगर्ज़ी की आँधी से सब बुझा जाती है,
वक़्त और तक़दीर के खेल के पासे ही तो हैं सब,
जो दो अनजान इस कदर मिल कर फिर अनजान बन जाते हैं,
हार दोनों की ही होती है इस खेल में,
बस फिर शुरुआत होती है दर्द को बयाँ करने की,
और यूँही मोहब्बत के कई मायूस फ़साने बन जाते हैं,
और दर्द के तड़पते तराने गुनगुनाये जाते हैं,
बस कोई नाम निगार बन जाता है, तो कोई नगमा परवाज़,
दर्द को हसीन बनाना भी एक हुनर है,
बस ये ही मान लेता है दिल,
कि तेरी मोहब्बत तो ना मिला,तेरा दिया दर्द ही सही,
तू सादिक़ ना बन सका,
कोई गिला नहीं,
तू बेईमान ही सही,
किसी नाम से तो तुझे याद रखेंगे,
खुदा से बस ये ही फ़रियाद करेंगे,
कि शुक्रिया,
मोहब्बत ना बक्शी हमें,
बेवफाई की सौगात ही सही |
याद : मोहब्बत : जज़्बात