philosophy, Shayari, Souful, Soulful

उलझन

कैसे करें ऐतबार इस इश्क़ पर,

यहाँ तो मेहताब भी,

हर रात अपना रूप बदलता है,

कैसे भरें साँसें सुकून की,

यहाँ तो बिन मौसम भी,

बादल तड़पकर बरसता है,

कैसे लाएँ आस इस दिल में,

यहाँ तो ठिठुरती सर्दी में भी,

पेशानी से टप टप पसीना निकलता है,

कैसे मनाए इस रूठे मन को,

यहाँ तो बसंत की बेला में भी,

बस आलूदगी का धुँआ चलता है,

कैसे माने की नसीब अच्छा है हमारा,

यहाँ तो सितारों भरी खूबसूरत रात में भी,

सिर्फ़ शहर की नक़ली रोशनी का नज़ारा मिलता है,

कैसे लाएँ इन आँखों में ठंडक,

यहाँ तो शान्त पानी के नीचे भी बवंडर पलता है,

कैसे दे इस रुह को तस्सली,

यहाँ तो मज़बूत चट्टानों में भी,

अन्दर ही अन्दर खोकलापन पनपता है |

उलझन : ज़िन्दगी : सोच

poetry, Shayari, Souful

शुकरान

जो काम बदर भी ना कर पाया,

वो आप कर गए,

दो कदम क्या पड़े आपके,

मानों जैसे इस कूचे को,

सैकड़ो चिराग रोशन कर गए |

जज़्बात : चिराग : रोशनी

Shayari, Souful, Sufi

शायरी – कसक

कई मर्तबा इन्सान खुद में इतना मशरूफ हो जाता है, की औरों की परेशानियों से वाकिफ़ भी नहीं हो पाता | वक़्त यूँही गुज़रता रहता है, ज़िंदगी यूँही ख़त्म हो जाती है | एक सुनापन सा महसूस होता है भीड़ में भी |हम कितना भी चीखलें या ज़ोर ज़ोर से अपनी पीड़ा को बयाँ करने की कोशिश करें, खुद में मशरूफ़, सिर्फ़ खुद के लिए जीने वाला इन्सान कभी उन्हें नहीं सुन पाता | तब ये चाँद सितारे ही सिर्फ़ अपने लगते हैँ | उनसे अपने ज़ख्म-ए-दिल की दास्तान एक हल्की सी गुफ़्तगू में भी आराम से कह पाते हैँ |

शायरी : कसक : गुफ़्तगू

Shayari, Souful

शायराना सी ये शाम

कभी कभी ऐसा महसूस होता है की इबादत और दुआ में कुछ कमी रह गई, जो ये मोहब्बत नसीब ना हुई | फिर लगता है कि शायद मोहब्बत का मुक़ाम हर कोई पा सकता | खैर कोई बात नहीं, मुक़ाम ना सही, सफ़र तो तय कर ही सकते हैँ |

मोहब्बत : मुक़ाम : सफ़र