काल के ना जाने कौन से क्षण में, ये प्रक्रिया आरम्भ हुई- चिदाकाश के दायरे ओझल होने लगे, रिक्त होने लगा स्मृतियों का पात्र, रिसने लगे उसमें से भावों के रंग, घुलने लगे वो यूँ हौले हौले, महाकाश की अपरिमितता में, किसी अज्ञात विशाल कुंड में | ये ही यात्रा है, आत्मान के ब्रह्मन् से युति की | ये ही यात्रा है, मोक्ष की |
विरह के ताप में, प्रेमाग्नि प्रज्वलित हुई, और ह्रदयों को सौहर्द मिलता रहा | सिया की गरिमा की रक्षा, राम के शौर्य की परीक्षा, दोनों ही इस अग्नि ने की | और प्रदान हुई, तिमिर बेला से आतंरिक दृष्टि, और इस व्याकुल मन को संतुष्टि | प्रेमाग्नि ने आत्मबल दिया, हर शंका का हल दिया, सिया और राम के, मिलन के मार्ग बनते गए, साथी और सारथी दोनों ही, इस मार्ग पर जुड़ते गए | नियति का इस तरह से न्याय हुआ, सियाराम का ये मिलन, प्रेम का पूर्ण अभिप्राय हुआ | समर्पण सत्य के प्रति, त्याग भौतिक तृष्णाओं का, नियंत्रण मानवीय विकारों का, धैर्य प्रतिकूल परिस्थितियों में, विश्वास काल के परिवर्तन में, पावनता प्रेम भाव में, करुणा हृदय में, कर्मठता धर्म के उत्तरदायित्व की, पराक्रम क्षत्रिय सा, राम के व्यक्तित्व में, प्रचण्ड रूप से उजागर हुआ, और इस तरह काम आई, ये प्रेमाग्नि, सिया के मान की रक्षा के, महा युद्ध में, जहाँ बल और बुद्धि का, अनूठा संतुलन लिए, राम ने पराजित किया, धर्म और न्याय के दायरे में, नियति का अभय रूप बनकर, रावण के इस लोभ को, अनगिनत विकारों को, अहंकार को, दुर्व्यहार को, और पा लिया अनन्त के लिए, इस प्रेम को, सिया वर राम के रूप में |
” Jaki rahi bhavna jaisi Prabhu murat dekhi tin taisi”
Tulsidas
Different expressions of the one divine source. Paths are different, Destination is the same. Therefore, so many gods in hinduism. Therefore so many rituals, festivals, mantras But a truly spiritual person will go beyond all this. He will move towards experiencing shunyata- A state of nothingness (The essence of one’s existence).
सतह सुर्ख है,तृष्णा गहरी है,प्रेम का असीम समंदर है अन्दर,फिर भी ना जाने कैसी अजब कमी सी है |उठता है तूफ़ान इस कदर,हर पल फूटना चाहता हो जैसे,मगर ये अश्क़ बहते भी नहीं,दो बूँद नैनों में झलकती भी नहीं,जबकि श्वासों से लेकर देह तक इतनी नमी सी है |क्यूँ फैला है अनन्त तक,ये खालीपन ?ना अँधेरा है ना ही रोशनी,ना नज़र आता ऊपर ये आसमान,और ना ही महसूस होती नीचे कोई ज़मीन सी है |कुछ रुका भी नहीं,कुछ बहा भी नहीं,कुछ दिखा भी नहीं,कुछ छुपा भी नहीं,कोई आरज़ू भी नहीं,कोई शिकायत भी नहीं,ना ही बेबसी है,ना ही बेचैनी है,ना जाने कैसी रहस्यमयी एहसास है ये,कभी ना तृप्त होने वाली वीमोही प्यास है ये |