दर्शन, philosophy, Spiritual

जल

ग्रीष्म ऋतु की उष्ण से,

माटी की ठंडक तक,

एक सम्पूर्ण यात्रा है,

इस जल की |

तप की अवधि,

और शीत का समय,

दोनों ही अनिवार्य है,

जल के अस्तित्व की,

सार्थकता और प्रभुता को,

स्थापित करने के लिए,

जन्म मृत्यु के,

इस अनवरत चक्र में |

प्रदीप्ति

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दर्शन, Spiritual

मोक्ष

काल के ना जाने कौन से क्षण में,
ये प्रक्रिया आरम्भ हुई-
चिदाकाश के दायरे ओझल होने लगे,
रिक्त होने लगा स्मृतियों का पात्र,
रिसने लगे उसमें से भावों के रंग,
घुलने लगे वो यूँ हौले हौले,
महाकाश की अपरिमितता में,
किसी अज्ञात विशाल कुंड में |
ये ही यात्रा है,
आत्मान के ब्रह्मन् से युति की |
ये ही यात्रा है,
मोक्ष की |

प्रदीप्ति

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philosophy, poetry, Soulful, Spiritual

वेदना

वेदना की आवृत्ति जब जब उजागर होती गई,

तब तब एक गूढ़ शक्ति उसे तिरोहित करती गई,

मानो जैसे इस अपरिमय अनन्त के,

अस्तित्वहीन सिरों से मुद्रित होती गई,

निदोल सा ये जीवन होता गया,

ह्रदय जितना इसका अवशोषण करता गया,

अभिव्यक्ति उतनी ही तीव्र होती गई,

दोनों में द्वन्द्व बढ़ता ही गया,

और यूँही वेदना की आवृत्ति,

अनुनादि स्तर पर पहुँचती गई,

एक देहरी जहाँ पर आकर,

चयन करना अनिवार्य होता गया,

यहाँ –

आवेग के क्षण क्षीण होते गए,

रिक्त अवस्था सा वक़्त कोंपल होता गया,

तिमिर और दीप्त संयुक्त होते गए,

स्त्रोत और गंतव्य विलीन होते गए |

Mythology, philosophy, Spiritual

सिया के राम

विरह के ताप में,
प्रेमाग्नि प्रज्वलित हुई,
और
ह्रदयों को सौहर्द मिलता रहा |
सिया की गरिमा की रक्षा,
राम के शौर्य की परीक्षा,
दोनों ही इस अग्नि ने की |
और प्रदान हुई,
तिमिर बेला से आतंरिक दृष्टि,
और
इस व्याकुल मन को संतुष्टि |
प्रेमाग्नि ने आत्मबल दिया,
हर शंका का हल दिया,
सिया और राम के,
मिलन के मार्ग बनते गए,
साथी और सारथी दोनों ही,
इस मार्ग पर जुड़ते गए |
नियति का इस तरह से न्याय हुआ,
सियाराम का ये मिलन,
प्रेम का पूर्ण अभिप्राय हुआ |
समर्पण सत्य के प्रति,
त्याग भौतिक तृष्णाओं का,
नियंत्रण मानवीय विकारों का,
धैर्य प्रतिकूल परिस्थितियों में,
विश्वास काल के परिवर्तन में,
पावनता प्रेम भाव में,
करुणा हृदय में,
कर्मठता धर्म के उत्तरदायित्व की,
पराक्रम क्षत्रिय सा,
राम के व्यक्तित्व में,
प्रचण्ड रूप से उजागर हुआ,
और
इस तरह काम आई,
ये प्रेमाग्नि,
सिया के मान की रक्षा के,
महा युद्ध में,
जहाँ
बल और बुद्धि का,
अनूठा संतुलन लिए,
राम ने पराजित किया,
धर्म और न्याय के दायरे में,
नियति का अभय रूप बनकर,
रावण के
इस लोभ को,
अनगिनत विकारों को,
अहंकार को,
दुर्व्यहार को,
और
पा लिया अनन्त के लिए,
इस प्रेम को,
सिया वर राम के रूप में |

प्रदीप्ति

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Spiritual

Religion

” Jaki rahi bhavna jaisi
Prabhu murat dekhi tin taisi”

  • Tulsidas

Different expressions of the one divine source.
Paths are different,
Destination is the same.
Therefore, so many gods in hinduism.
Therefore so many rituals, festivals, mantras
But a truly spiritual person will go beyond all this.
He will move towards experiencing shunyata-
A state of nothingness
(The essence of one’s existence).

GOD : RELIGION : FAITH

दर्शन, philosophy, Spiritual

नमी

सतह सुर्ख है,तृष्णा गहरी है,प्रेम का असीम समंदर है अन्दर,फिर भी ना जाने कैसी अजब कमी सी है |उठता है तूफ़ान इस कदर,हर पल फूटना चाहता हो जैसे,मगर ये अश्क़ बहते भी नहीं,दो बूँद नैनों में झलकती भी नहीं,जबकि श्वासों से लेकर देह तक इतनी नमी सी है |क्यूँ फैला है अनन्त तक,ये खालीपन ?ना अँधेरा है ना ही रोशनी,ना नज़र आता ऊपर ये आसमान,और ना ही महसूस होती नीचे कोई ज़मीन सी है |कुछ रुका भी नहीं,कुछ बहा भी नहीं,कुछ दिखा भी नहीं,कुछ छुपा भी नहीं,कोई आरज़ू भी नहीं,कोई शिकायत भी नहीं,ना ही बेबसी है,ना ही बेचैनी है,ना जाने कैसी रहस्यमयी एहसास है ये,कभी ना तृप्त होने वाली वीमोही प्यास है ये |

दर्शन, L, philosophy, Soulful, Spiritual

निष्क्रिय

© tulip_brook

जैसे प्रवाह, वृद्धि के अंतर्गत,

विराजमान एक स्थिर रहस्य,

जैसे ध्वनि, कथन के भीतर,

विद्यमान एक गूढ़ मौन,

वैसे ही नश्वर देह के अन्दर,

स्तिथ एक मर्म अमृत |

इस जीवन में -जो प्रत्यक्ष है,

वो पूर्ण सत्य नहीं,

और

जो परोक्ष है,

वो अर्द्ध मिथ्या नहीं |

जीवन : प्रत्यक्ष : परोक्ष

दर्शन, philosophy, Soulful, Spiritual

रास्ता

Source : Aakash Veer Singh Photography

रास्ता ये ख़त्म होते जब नज़र आया ,

एक अदृश्य राह प्रारम्भ हो गई,

मुसाफ़िर सा मैं यूँ सोचने लग गया,

ये कौनसी आरज़ू उजागर हो गई,

धरा से जुड़े थे देह और ये साया,

मगर अब इन्हें नीर से मिलन की चाहत हो गई,

बाहर एक कदम जब हौसले का उठाया,

तब अन्दर भरी शंका कहीँ खो हो गई,

धीरे धीरे मैं इस जल में सुकून से यूँ बहता गया,

जैसे सदियों पुरानी तड़प की ये तलाश ख़त्म हो गई,

और फिर देह और इस साये को मैं यूँ त्याग आया,

जैसे आत्मा की इस बंधन से सदा के लिए मुक्ति हो गई |

रास्ता : धरा : नीर

दर्शन, philosophy, Spiritual

आलोक

Credits : Aakash Veer Singh Photography

तड़प तिमिर त्याग की,

तृष्णा ताप तंकन की,

आस आलोक आलिंगन की,

आकांक्षा अंकुरित अंतर्मन की,

वृहद विवेचन वैराग्य का,

सरल संलाप साध्य का,

सफ़र सुदृढ़ स्तिथि का,

विराम व्याकुल वृत्ति का,

प्राप्ति पुण्य परमानन्द की |

अलोक : ताप : परमानन्द

दर्शन, philosophy, Soulful, Spiritual

The Echo of the Divine

© Aakash Veer Singh Photography


The sweet moment of twilight,

And the sky above,

Ready to adorn the blanket,

Of a dark blue shade.

The stillness in the air,

The peace in the ambience,

The divinity’s sandstone idol,

Fragrance of mogra, sandalwood, and camphor,

And the mellow smell of the wet soil.

A flame emblazens much brighter,

As the darkness slowly sets in,

With the sound of the conch and the bells,

The reverberating utterance of the rhythmic mantras,

And the infallible faith of the engrossed devotees.

Indeed, this is true devotion,

When, everything comes to a standstill,

And is ready to be ingested in one’s soul,

And then get completely soaked,

In the ocean of this gaiety,

And surrender oneself,

In dance,

In music,

In emotions,

In expression,

In joy and ecstacy,

Where one experiences the ultimate truth,

A glimpse of the divine.

divine : echo : bliss