वो
फ़लक –
जो कभी हासिल ना हो सका,
मगर ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में,
सबसे आगे रहा हमेशा |
और ये ज़मीन –
जो हमेशा हमारी ही रही,
मगर हमारे साथ के लिए,
रज़ा मंदी का इंतज़ार करती रही |
इंसान को हमेशा,
कद्र और फ़िक्र,
नाक़ाबिल – ए – रसाई तोर प्यार की ही होती है |

वो
फ़लक –
जो कभी हासिल ना हो सका,
मगर ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में,
सबसे आगे रहा हमेशा |
और ये ज़मीन –
जो हमेशा हमारी ही रही,
मगर हमारे साथ के लिए,
रज़ा मंदी का इंतज़ार करती रही |
इंसान को हमेशा,
कद्र और फ़िक्र,
नाक़ाबिल – ए – रसाई तोर प्यार की ही होती है |
कई मर्तबा इन्सान खुद में इतना मशरूफ हो जाता है, की औरों की परेशानियों से वाकिफ़ भी नहीं हो पाता | वक़्त यूँही गुज़रता रहता है, ज़िंदगी यूँही ख़त्म हो जाती है | एक सुनापन सा महसूस होता है भीड़ में भी |हम कितना भी चीखलें या ज़ोर ज़ोर से अपनी पीड़ा को बयाँ करने की कोशिश करें, खुद में मशरूफ़, सिर्फ़ खुद के लिए जीने वाला इन्सान कभी उन्हें नहीं सुन पाता | तब ये चाँद सितारे ही सिर्फ़ अपने लगते हैँ | उनसे अपने ज़ख्म-ए-दिल की दास्तान एक हल्की सी गुफ़्तगू में भी आराम से कह पाते हैँ |
शायरी : कसक : गुफ़्तगू