दर्शन, philosophy, poetry

सड़क

रोज़ गुज़रते हैं यहाँ से,

भोर के ख़ुशनुमा ख़्वाब कई ,

दोपहर की उजली उजली सी ये उमंग,

साँझ की अचल निराशा,

और रजनी का गहरा चिंतन भी |

हर उम्र यहाँ ठहरती है,

अपने अपने हिसाब से,

फलों की फेरी लगाता वो नौजवान,

करता उम्मीद दो रोटी की,

सुबह की बस का इंतज़ार करता,

वो छोटा सा बच्चा,

मिलने को उत्सुक अपने दोस्तों से,

साइकिल पर कॉलेज जाते,

दोस्त यार कई,

बेफ़िक्र दुनिया की परेशानियों से,

स्कूटर पर दफ़्तर जाते वो अंकल,

देने एक सुरक्षित जीवन,

अपने परिवार को,

यूँही पैदल चलती वो गृहणी,

हाथ में सब्ज़ी का थैला लिए,

गृहस्ती की ज़िम्मेदारी निभाती हुई,

लाठी संग हौले हौले चलती,

दादा नाना की ये टोली,

करने सैर और बात चीत |

कोई यहाँ उम्मीद छोड़ जाता है,

कोई थकान और शिकन,

कोई यहाँ आने वाले वक़्त की ख्वाहिशें,

कोई बीते हुए पलों की रंजिशे |

कभी यहाँ जश्न होता है,

कभी शोक और मौन भी,

कभी यहाँ काफिले निकलते हैं,

कभी सुनसान आहटें भी,

कभी यहाँ खिलती हैं मुस्कान,

कभी झड़ती मुरझाए साँसें भी,

सब कुछ यहीं होता है,

हर रोज़, हर पल,

यूँही ये सड़क बन जाती है,

एक अहम् हिस्सा,

सबके जीवन का |

philosophy, Shayari, Souful, Soulful

उलझन

कैसे करें ऐतबार इस इश्क़ पर,

यहाँ तो मेहताब भी,

हर रात अपना रूप बदलता है,

कैसे भरें साँसें सुकून की,

यहाँ तो बिन मौसम भी,

बादल तड़पकर बरसता है,

कैसे लाएँ आस इस दिल में,

यहाँ तो ठिठुरती सर्दी में भी,

पेशानी से टप टप पसीना निकलता है,

कैसे मनाए इस रूठे मन को,

यहाँ तो बसंत की बेला में भी,

बस आलूदगी का धुँआ चलता है,

कैसे माने की नसीब अच्छा है हमारा,

यहाँ तो सितारों भरी खूबसूरत रात में भी,

सिर्फ़ शहर की नक़ली रोशनी का नज़ारा मिलता है,

कैसे लाएँ इन आँखों में ठंडक,

यहाँ तो शान्त पानी के नीचे भी बवंडर पलता है,

कैसे दे इस रुह को तस्सली,

यहाँ तो मज़बूत चट्टानों में भी,

अन्दर ही अन्दर खोकलापन पनपता है |

उलझन : ज़िन्दगी : सोच

दर्शन

चोट

वो कहते रहे –

” तुम कुछ काम के नहीं,

ना हो ख़ास, ना होगा तुम्हारा नाम कहीँ,

अपनी इन हसरतों पे लगाओ लगाम सही,

ना करदे ये तुम्हें बदनाम कहीँ,

होता है अगम्य ख्वाबों का अंजाम यही | “

शब्दों की इस नकारात्मकता ने –

हमको हर दिन सताया,

रातों का भी चैन गवाया,

ना अब नीन्द थी, ना ही सपनें,

यूँही लेटे रेहते थे इस बिस्तर पे तड़पने,

सुबह भी अब फ़ीकी फ़ीकी सी लगने लगी,

शाम आते आते उम्मीद की लौ भी बुझने लगी |

ऐसा लगता था –

जैसे कोई खिला फूल भी महकना भूल गया हो,

जैसे कोई नन्हा बच्चा भी चहकना भूल गया हो |

उमंग भरी आँखों का ये तेज,

गहरे काले घेरों में ओझल होने लगा,

ऊर्जा भरे अस्तित्व का ओजस भी,

देह के इन टूटी दरारों में मद्दीम होने लगा |

बस यूँही गूँजती रही वो बातें,

और हर पल लगता रहा येही,

मानों जैसे वो ना होकर भी यहाँ,

हर पल हमें बस यूँही बद्दुआ देते रहे |

चोट : अस्तित्व : आरोप

inspiration, Soulful

कदम

हिम्मत का एक कदम जब बढ़ाया आज,

तो डर के सैकड़ो जज़्बात चरमरा गए,

और जीने की उम्मीद इस कदर जागी इस दिल में ,

मानों जैसे हज़ारों चिराग जगमगा उठे |

कदम : हिम्मत : उम्मीद

दर्शन, philosophy, poetry

दर्शन – शून्य

शून्य सा ही तो है ये जीवन,

जहाँ चलते हुए इस वक्रता पर,

कभी उच्चाईओं को छू तो लेते हैँ,

मगर जब शिखर पर जा पहुँचते हैँ,

एक उमंग और जोश से भरे हुए,

तभी क्षण भर में देखते देखते,

ये दिशा ही पलट जाती है,

और फिर जा पहुँचते हैँ वहीं,

उस गहरे से एक रसातल में,

जहाँ हताशा सी महसूस होने लगती है,

वहीं फिर जीवन मौका देता है,

फिर से इस शून्य को मापने का,

और फिर हर बार वही होता है,

यूँही ये जीवन शुन्य सा चलता रहता है |

दर्शन : शून्य : जीवन