दर्शन, philosophy, poetry

पत्थर

पत्थर में उतकीर्ण कहानियाँ,
और तरशे हुए ये स्तम्भ,
भिन्न भिन्न आकार की ये कड़ियाँ,
जैसे प्रणाली हो जीवन शैली की,
घटित हुई हो जो,
भूत काल में,
ले जाती है हमें,
उस वक़्त में,
और बतलाती है मौन होकर भी,
दास्तान –
सभ्यता की,
संस्कृति की,
धर्म की,
कर्म की,
सत्य की,
मिथ्या की,
विजय की,
पराजय की,
व्यक्ति की,
समाज की,
उत्थान की,
पतन की,
उल्हास की,
ग्लानि की,
काल चक्र के सार की,
जो परिवर्तनशील होकर भी,
दोहराता है वही क्रम,
अलग अलग कहानियों के रूप में |

इतिहास : कहानी : पत्थर

दर्शन, inspiration, philosophy, Soulful

रंग

© tulip_brook

रंग ज़िन्दगी के कुछ ऐसे हैं,

कुछ फीके, कुछ गाढ़े,

कुछ उथले, कुछ गहरे,

कुछ निर्मल, कुछ उग्र,

कुछ शान्त, कुछ चँचल,

कुछ खामोश,कुछ गूंजते,

कुछ अधूरे, कुछ पूरे |

हर रंग एक जज़्बात उजागर करता है,

एक एहसास से जुड़ जाता है,

कभी उम्मीद बन जाता है,

कभी सबक बन जाता है,

कभी ख़्वाब बन जाता है,

कभी याद बन जाता है,

कभी चाहत बन जाता है,

कभी नफ़रत बन जाता है |

कोई इसे धर्म से जोड़ देता है,

कोई इसे कर्म से जोड़ देता है,

कोई इसे जंग का जामा पहना देता है,

कोई इसे शान्ति का प्रतीक बना देता है,

कोई इसे विजय के स्तम्भ पर सजाता है,

कोई इसे शिकस्त के खंडर पर बैठाता है,

कोई इसे संकुचित दायरे में बाँध देता है,

कोई इसे असीमता में घोल देता है,

कोई इसे उत्सव के रूप में मनाता है,

कोई इसे शोक में जताता है |

रंग एक कविता भी है,

रंग एक कहानी भी,

रंग एक आवाज़ भी है,

रंग एक मौन भी,

रंग शब्द भी है,

रंग निशब्द भी,

रंग एक तथ्य भी है,

रंग एक रहस्य भी |

रंग : ज़िन्दगी : सोच

philosophy, poetry, Soulful, Spiritual

दिया और बाती

दीए ने बाती से, 

कुछ कहना चाहा |

समय सही थी, 

और जज़्बात भी |

दिया बोला, 

कुछ व्याकुल होकर –

“इस सुनी चौखट, 

और अँधेरी गली में, 

अनजान शहर में, 

और यहाँ बसने वालों की 

बेरुखी में |”

ये सुनते ही बाती ने दिए को रोका और बोली, 

कुछ अप्रभावित सी –

” आज हूँ मैं, 

कल नहीं,

इस लौ के साथ, 

ख़तम हो जाऊँगी,

ना सुनी चौखट, 

ना अँधेरी गली, 

और ना ही इस अनजान शहर में, 

बसने वालों की बेरुखी, 

से मेरा कोई वास्ता है | “

दिया बोला, 

एक गहरी कसक के साथ –

” सही कहा तुमने, 

जिसकी परेशानी वो जाने, 

तुम जलकर ख़ाक हो जाऊगी, 

एक लौ मैं सिमटी है, 

तुम्हारी ये ज़िन्दगी, 

और उतनी ही सिमटी सोच है |”

इस पर बाती बोली, 

क्रोधित होकर –

” हाँ ! सही कहा, 

ये एक लौ की ज़िन्दगी मेरी, 

 सब कुछ रौशन

तो करके जाती है, 

लेती नहीं कुछ भी , 

और बस ख़त्म हो जाती है |

तुम किस काम के हो?

ज़र्र सा फ़िसले, 

और चूर चूर |

वरना यूँही व्यर्थ पड़े हुए, 

एक गुमनाम ज़िन्दगी लिए |

ज़िन्दगी हो कम सही, 

कर्मण्य हो मगर | “

अब दिया बोला, 

 मुस्कुराते हुए –

” ये लौ की ख़ाक, 

मुझ पर भी रह जाएगी, 

किसीके नैनों का

 काजल बनेने के  लिए, 

कुछ खो कर ही 

कुछ पाते हो, 

दस्तूर ज़िन्दगी का 

इस तरह निभाते हो, 

कौन कितना जिया 

इससे क्या वास्ता |

सार्थक जीवन वही, 

जहाँ ग्लानि और पीड़ा

अपने से ज़्यादा, 

दूजे की, 

महसूस की जाए, 

और

ये स्वीकार करो,

कि

जीवन ये भी है और वो भी, 

अतुल्य है, अमूल्य है, 

तुम्हारा भी और मेरा भी |”

ये सुनकर, 

बाती और प्रज्वलित हो उठी, 

और बोली, 

स्नेह से –

“आओ मेरे संग, 

ओ ! माटी का प्यारे से रूप, 

मैं भी उसी धरा का एक अंश हूँ, 

और 

वहीँ फिर मिल जाना है, 

तुम्हें भी और मुझे भी, 

ये आखरी मुलाकात नहीं, 

मिलन की बेला है, 

आओ संग मेरे, 

ख़ाक बनकर तुमपे लिपट जाँऊ, 

सफ़ल हो जाएगा मेरा ज़िन्दगी का ये सफ़र |”

और यूँ झिलमिलाती वो लौ, 

विलीन हो गई, 

दिए की काया पर |

असीम प्रेम इसे ही कहते हैं |

दिया : बाती : प्रेम