दर्शन, inspiration, philosophy, Soulful

ग़म

यूँ तो ज़िन्दगी में,

हर जज़्बात मौजूद है,

मगर ग़म की बात करें तो,

कोई रहकर देता है,

कोई जाकर,

कोई कहकर दे जाता है,

कोई चुप रहकर,

कोई यकीन के नक़ाब में,

कोई फ़रेब के खुलासे में,

कोई झूठ के लिबास में,

कोई सच के एहसास में,

कोई करीबी होकर,

कोई दूरी बनाकर,

कोई प्यार करके,

कोई वार करके,

कोई अपना बनके,

कोई अनजाना बनके,

कोई क्षण भर ही,

कोई ताउम्र तक,

ये ग़म दे जाता है |

वो ग़म फिर,

कभी बहता है,

इन अश्कों से,

किसी सैलाब की तरह,

कभी भड़कता है,

इन नैनों में,

किसी लावा की तरह,

कभी गरजता है,

इन लबों से,

किसी तूफ़ानी बादल की तरह,

कभी ठहरता है,

इस ललाट पर,

किसी गहरी निशा की तरह,

कभी चुभता है,

इस देह में,

किसी रेगिस्तानी शूल की तरह,

कभी नज़र आता है,

एक प्रचण्ड अस्तित्व सा,

कभी ओझल हो जाता है,

किसी साये की तरह |

ग़म : ज़िन्दगी : जज़्बात

दर्शन, inspiration, philosophy

आभास

ठहरे से इस पल में,
सदियों का प्रवाह शामिल है,
सूने से इस परिवेश में भी,
विगत हलचल ओझल है,
टूटी सी इन दरारों में से,
बुरादे की तरह झड़ते हैं,
कई दस्ताँनें पुरानी,
परत दर परत ये ज़मीन,
छुपाए हुए है राज़ कई,
जहाँ आज हम खड़े हैं,
वहाँ कल दौड़ा होगा,
इस ख़ामोश प्रांगण में,
गूँज है बीते ज़माने की,
इतिहास नज़र आ ही जाता है,
महसूस हो जाती है भूतकाल भी,
बस ज़रूरत है ठहरने की,
कुछ देर सब कुछ भुलाकर,
उस तथ्य को
ठहरे से इस पल में,
सदियों का प्रवाह शामिल है,
सूने से इस परिवेश में भी,
विगत हलचल ओझल है,
टूटी सी इन दरारों में से,
बुरादे की तरह झड़ते हैं,
कई दस्ताँनें पुरानी,
परत दर परत ये ज़मीन,
छुपाए हुए है राज़ कई,
जहाँ आज हम खड़े हैं,
वहाँ कल दौड़ा होगा,
इस ख़ामोश प्रांगण में,
गूँज है बीते ज़माने की,
इतिहास नज़र आ ही जाता है,
महसूस हो जाती है भूतकाल भी,
बस ज़रूरत है ठहरने की,
कुछ देर सब कुछ भुलाकर,
उस तथ्य का बोध करने की,
जो गुप्त ही रह जाता है,
उन लोगों के लिए,
जो सदैव वक़्त के प्रतिकूल,
यूँही भागते रहते हैं,
ना ही पल जीते हैं,
ना ही स्मृतियाँ बनाते हैं |

आभास : इतिहास : ठहराव