
सब कुछ ठहरा ठहरा सा है यहाँ,
इतिहास चुप चुप सा नज़र आता है,
ये स्तम्भों का समूह,
बयाँ कर रहा है कोई दास्तान,
फ़तेह की और पतन की भी,
जीवन की विडम्बना है यह,
और एक स्पष्ट सत्य भी,
कि ठहराव में भी हलचल हो सकती है,
बंजर में भी जीने की हसरत हो सकती है,
एक नन्हा सा बच्चा यूँही,
बेफ़िक्र और मदमस्त,
दौड़ता इस इतिहास के धरातल पर,
छोड़के निशान अपने कोमल अस्तित्व की,
चला जाता है गुमनाम सा |
एक बलवान नौजवान भी,
उठाता अपने कदम इस कदर शान से,
जैसे जी रहा हो विजय की गाथा कोई,
और एक लड़खड़ता वृद्ध पुरुष,
ठहर जाता वहीं इस चिंतन में,
जैसे खो दिया हो बहुत कुछ,
थोड़ा सा पाने की लालसा में |
वर्त्तमान भी एक दिन इतिहास बनेगा,
जो छूट गया,
जो टूट गया,
वो भी एक दिन,
एक मनमोहक रास बनेगा |
इतिहास : एहसास : अस्तित्व