क्या पँखुड़ी फूल से जुदा है?क्या कली को अपना कल पता है?क्या बहार पतझड़ से डरती है?क्या बंजर ज़मीन फूटने से कतरती है?क्या नदी ठहरना चाहती है?क्या सागर बहना को तरसता है?क्या आकाश सूर्य से रंग चुराता है?क्या सूर्य बादलों पे प्यार जताता है?क्या चाँद रोज़ बेनक़ाब होना चाहता है?क्या सूरज कुछ दिन विश्राम करना चाहता है?क्या हवा अपनी गति की मोहताज होती है?क्या बारिश की बूँदों में भी प्यास होती है?क्या रात को दिन से ईर्ष्या होती है?क्या शाम को अपने अस्तित्व की चिंता होती है?क्या फूलों को अपनी महक पे अभिमान होता है?क्या पर्वत को अपनी विशालता पे गर्व होता है?क्या सूखे फूलों को फिर से खिलने की इच्छा होता है?क्या टूटी लहरें फिर से उभरना चाहती हैं?क्या सुलगता लावा भी ठंडकता चाहता है?क्या बर्फ़ की चादर भी गर्माहट चाहती है?क्या कोयला हर बार हीरा बन पाता है?क्या टूटा कॉंच फिर से जुड़ पाता है?क्या दर्द को दवा की ज़रूरत होती है?क्या दुआ हर बार पुरी होती है?क्या ये उदासी इतनी ज़रूरी होती है?क्या ये ख़ुशी एक मजबूरी होती है?क्या ये अश्क़ कमज़ोरी होते हैं?क्या ये प्रेम यूँही सदैव रहता है?क्या एक दूजे से मिलना तय होता है?क्या ये रिश्ते अकेलेपन से कीमती हैं ?क्या ये अपने गैरों से क़रीब होते हैं?क्या पहचान अनजान होना चाहती है?क्या अनजान हमेशा के लिए जुड़ना चाहते हैं?क्या खोना जीवन का दस्तूर होता है?क्या पाना हमेशा स्वार्थ होता है?क्या है और क्या नहीं?क्यूँ है और क्यूँ नहीं?कब है और कब नहीं?इसका तो पता नहीं,मगर,ये सवाल यूँही उठते रहेंगे,कुछ का जवाब मिल जाएगा,कुछ यूँही रहस्य बनके रहेंगे |
जल के प्रवाह अनेक, कभी समतल शालीन स्थिर, एक ताल की तरह, कभी चँचल चहकता हुआ, एक नादान सी नदिया की तरह, कभी प्रचण्ड प्रबल रूप लिए, समुन्दर की लहरों की तरह, कभी कल कल गाता गीत कोई, एक झरने की तरह | कभी एक लकीर सी धारा बन जाए, कभी एक टेढ़ा मेढ़ा किनारा बन जाए, कभी मीलों तक यूँ फैलता हुआ, किसी क्षितिज की तलाश में, कभी ओक भर में यूँ समाता हुआ, किसी तृष्णा तृप्ति की आस में, कभी ये एक फुहार सा, तो कभी एक बौछार सा, कभी ये बूँद बूँद सा, तो कभी ये कतरा कतरा सा | जल के प्रवाह हैं कई, हर प्रवाह है निराला, कभी स्रोत को छोड़ता, कभी गंतव्य को ढूँढता, कभी रुकता, कभी ठहरता, कभी मुड़ता, कभी घूमता, कभी गिरता, कभी उछलता, कभी बहता, कभी लेहलहता, सावन में बरसता हुआ, बसंत में पिघलता हुआ, ग्रीष्म में उबलता हुआ, शीत में जमता हुआ |