दर्शन, Spiritual

मोक्ष

काल के ना जाने कौन से क्षण में,
ये प्रक्रिया आरम्भ हुई-
चिदाकाश के दायरे ओझल होने लगे,
रिक्त होने लगा स्मृतियों का पात्र,
रिसने लगे उसमें से भावों के रंग,
घुलने लगे वो यूँ हौले हौले,
महाकाश की अपरिमितता में,
किसी अज्ञात विशाल कुंड में |
ये ही यात्रा है,
आत्मान के ब्रह्मन् से युति की |
ये ही यात्रा है,
मोक्ष की |

प्रदीप्ति

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दर्शन, philosophy

दर्शन

अज्ञानता भावहीन है,
ज्ञात होना भावपूर्ण,
प्रथम हैं इस श्रेणी में,
भाव शंका के, भय के,
एवं आश्चर्य के |
बढ़ती तृष्णा भी है,
और असमंजस भी |
अगर असमंजस विजयी हुई,
तो भय प्रबल होता जाएगा,
अगर तृष्णा विजयी हो जाए,
तो फिर ये भाव परिवर्तित होते हैं,
स्पष्टता में, निर्भीकता में,
और धीरे धीरे व्यक्ति,
संभाव की स्तिथि तक पहुँच जाता है,
ये सफ़र ज्ञात से बोध का है |