दर्शन, inspiration, Mythology, poetry

धारा


जल के प्रवाह अनेक,
कभी समतल शालीन स्थिर,
एक ताल की तरह,
कभी चँचल चहकता हुआ,
एक नादान सी नदिया की तरह,
कभी प्रचण्ड प्रबल रूप लिए,
समुन्दर की लहरों की तरह,
कभी कल कल गाता गीत कोई,
एक झरने की तरह |
कभी एक लकीर सी धारा बन जाए,
कभी एक टेढ़ा मेढ़ा किनारा बन जाए,
कभी मीलों तक यूँ फैलता हुआ,
किसी क्षितिज की तलाश में,
कभी ओक भर में यूँ समाता हुआ,
किसी तृष्णा तृप्ति की आस में,
कभी ये एक फुहार सा,
तो कभी एक बौछार सा,
कभी ये बूँद बूँद सा,
तो कभी ये कतरा कतरा सा |
जल के प्रवाह हैं कई,
हर प्रवाह है निराला,
कभी स्रोत को छोड़ता,
कभी गंतव्य को ढूँढता,
कभी रुकता,
कभी ठहरता,
कभी मुड़ता,
कभी घूमता,
कभी गिरता,
कभी उछलता,
कभी बहता,
कभी लेहलहता,
सावन में बरसता हुआ,
बसंत में पिघलता हुआ,
ग्रीष्म में उबलता हुआ,
शीत में जमता हुआ |

प्रवाह : धारा : जल

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नीर

Source- Aakash Veer Singh Photography

इस नीर के रूप निराले हैं,

कभी बन जाता है ये एक बलखाती नदिया,

तो कभी एक शालीन सा तालाब,

कभी बन जाता है ये एक मदमस्त झरना,

तो कभी समुद्र में उठता हुआ कोई सैलाब,

कभी बन जाता है ये ऊष्ण का धुँदला धुआँ,

तो कभी सावन की घनघोर घटा,

कभी गिरता है ये बदली से यूँ,

टप टप इस धरा पर,

तो कभी ठहरता है दमकते मोती सा,

सर्द सुबह में खिले किसी पँखुरी पर,

कभी बन जाता है ये तृष्णा में ओक,

तो कभी गदगद होते हुए ह्रदय का शोक,

झलक जाता है इन नैनों के सिरों से,

इस तरह जैसे हो गुमसुम सी धरा कोई,

जिसका स्रोत और गंतव्य दोनों ही,

एक गहरा उनसुलझा रहस्य हो कोई |

नीर : स्रोत : गंतव्य