दर्शन, philosophy

आभास

ये अश्रुधारा कोई आगंतुक नहीं,
निवासी है इस ह्रदय द्वीप की,
इसका आगमन नहीं हुआ कभी,
ये आरम्भ से है विभव लिए,
एक सैलाब के अस्तित्व का,
मगर स्थिर रहती है फिर भी,
प्राण वेग को  उत्प्लाव देती हुई,
ठहराव की सुगम प्रबल स्तिथि से,
रिसाव की विश्रृंखल दुर्बल अवस्था में,
तब ही आती है ये,
जब होता है एक निर्दयी आघात,
इसके धैर्य पर,
इसकी स्तिरथा पर,
इसकी निशब्द आभा पर,
इसकी रहस्यमयी छवि पर,
इसके सम्पूर्ण अस्तित्व पर |
और फिर होता है ऐसा आडम्बर,
एक आवेग पूर्ण दृश्य का मंज़र,
जो पहले सब धुंधला कर जाता है,
और फिर
क्षणिक अनुभूति सा,
ओझल हो जाता है,
किसी गहरे तल पर,
जो अंतर्मन की दृष्टि के,
एक सूक्ष्म स्मृति सा,
उसके ही अंक में,
यूँ समा जाता है,
अस्मिता का अभिन्न अंशलेख बनकर |
कर्म और काल के दायरे में,
इस कदर बद्ध होकर,
भौतिक तृष्णानाओं के व्यूह में,
फिर एक दास्तान बनाने,
फिर आघात से विक्षुब्ध होकर,
फिर रिसाव की प्रक्रिया को,
उन्ही चरणों से ले जाकर,
अवगत कराना उसका स्थान,
अस्मिता में |

प्रदीप्ति

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दर्शन, inspiration, philosophy

आभास

ठहरे से इस पल में,
सदियों का प्रवाह शामिल है,
सूने से इस परिवेश में भी,
विगत हलचल ओझल है,
टूटी सी इन दरारों में से,
बुरादे की तरह झड़ते हैं,
कई दस्ताँनें पुरानी,
परत दर परत ये ज़मीन,
छुपाए हुए है राज़ कई,
जहाँ आज हम खड़े हैं,
वहाँ कल दौड़ा होगा,
इस ख़ामोश प्रांगण में,
गूँज है बीते ज़माने की,
इतिहास नज़र आ ही जाता है,
महसूस हो जाती है भूतकाल भी,
बस ज़रूरत है ठहरने की,
कुछ देर सब कुछ भुलाकर,
उस तथ्य को
ठहरे से इस पल में,
सदियों का प्रवाह शामिल है,
सूने से इस परिवेश में भी,
विगत हलचल ओझल है,
टूटी सी इन दरारों में से,
बुरादे की तरह झड़ते हैं,
कई दस्ताँनें पुरानी,
परत दर परत ये ज़मीन,
छुपाए हुए है राज़ कई,
जहाँ आज हम खड़े हैं,
वहाँ कल दौड़ा होगा,
इस ख़ामोश प्रांगण में,
गूँज है बीते ज़माने की,
इतिहास नज़र आ ही जाता है,
महसूस हो जाती है भूतकाल भी,
बस ज़रूरत है ठहरने की,
कुछ देर सब कुछ भुलाकर,
उस तथ्य का बोध करने की,
जो गुप्त ही रह जाता है,
उन लोगों के लिए,
जो सदैव वक़्त के प्रतिकूल,
यूँही भागते रहते हैं,
ना ही पल जीते हैं,
ना ही स्मृतियाँ बनाते हैं |

आभास : इतिहास : ठहराव

दर्शन, inspiration, philosophy, Soulful

ठहराव

Source : Aakash Veer Singh Photography

जीवन ये गतिशील सा,

क्षण क्षण एक बदलाव है,

रफ़्तार की इस होड़ में,

कहीँ खो गया ठहराव है |

हड़बड़ी हर चीज़ की,

बेचैनी हर बात में |

ना निकल जाए ये वक़्त हाथ से,

इसलिए पल पल खोते चले जाते हैं |

ना कोई सुकून है,

ना कोई संतोष है,

बस एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा,

सबसे आगे निकलने की होड़ है |

क्या पाने निकले थे,

क्या खोते जा रहे हो,

रफ़्तार की लालसा में,

ठहराव से वंचित होते जा रहे हो |

ज़रा देखो इस नज़ारे को,

सब कुछ ठहरा हुआ,

ये जल,

ये आकाश,

और ये धरा भी |

रुक जाओ कुछ देर यहीं,

प्रतिस्पर्धा और रफ़्तार को भूलकर,

इस लालसा को त्यागर,

महसूस करते जाओ बस,

इस नज़ारे के कण कण को |

मिलते सिरे गगन, नीर, भूमि के,

जहाँ एक रंग दूसरे में विलीन होकर भी,

अपना अस्तित्व नहीं खोता,

आसमान का नीलपन,

इस पर्वत पर चढ़ता है,

पर्वत का प्रतिबिम्ब,

इस जल में झलकता है,

जल का दर्शन,

ये बादल करता है,

ज़मीन का गेरुआ रंग,

इस जल में घुलता है,

जल का कतरा कतरा,

गेरू रंग लेकर भी,

निर्मल लगता है |

ये सब जुड़े हैं,

फिर भी भिन्न हैं,

एक दूजे में मिले हैं,

फिर भी इनकी,

पृथकत्वता बरकरार है |

ज़रा रुको दो पल यहीं,

महसूस करो कुछ देर ही सही,

और देखो इन आसमान, पहाड़,

ताल, और इस ज़मीन को,

एकाग्र मन से,

तो महसूस करोगे,

एक ही भाव,

ठहराव,

ठहराव,

ठहराव |

गति : जीवन : ठहराव

दर्शन, inspiration, philosophy

तरु का तराना

source : Aakash Veer Singh Photography


विलम्बित लय सा है ये रास्ता,

शडज से प्रारम्भ होता तो है,

मगर निषाद तक पहुँचता नहीं,

न्यास का अनुभव करता हुआ,

इस जीवन राग में,

रमणीय ठहराव ले आता है,

इस पर्णहीन तरु की तरह,

जिसका ना ही कोई,

आरोह है ना अवरोह,

जिसके स्थायी और अंतरा दोनों,

सिर्फ़ एक ही स्वर से बने हैं,

एक अत्यन्त लम्बी प्रतीक्षा के |

तरु : राग : जीवन