philosophy

बाज़ार

संसार के इस बाज़ार में,
लिए खड़े हैं तराज़ू सब,
हर रिश्ते का वज़न,
तुलता है जहाँ हर रोज़,
अपेक्षाओं और ज़िम्मेदारियों के पलड़े में,
बिकता है वक़्त,
कीमत होती हर जज़्बात की,
रत्ती रत्ती हो जाता है मिलना मुश्किल,
और
खोने को होते हैं हिस्से हज़ार |
उसी बाज़ार के एक कोने में,
बिना तराज़ू खड़ा है,
इंसानियत का रिश्ता हथेली में लिए,
हर वो बच्चा अनाथ,
जिसे ना कुछ मिलने की है लालसा,
और
ना ही कुछ खोने की बेबसी |
ये दर्जा है इन्सानियत का,
इस संसार के बाज़ार में,
कोई जगह ही नहीं इसकी |

बाज़ार : तराज़ू : रिश्ते

दर्शन, inspiration, philosophy, poetry

काल

पुरातन से नूतन तक का ये अस्थिर सफ़र,
कारण और प्रभाव के ये बदलते अभिप्राय,
जीवन के ये विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोण,
व्यक्तिगत और सामजिक विचारधारा के ये द्वन्द्व,
कला और व्यापार की अनुपयुक्त प्रतिस्पर्धा,
सार्थकता और निरर्थकता का ये अनसंतुलित तराज़ू,
परंपरावाद और उदरवाद के बीच के ये बढ़ता घटता फ़ासले,
प्रत्यक्ष और परोक्ष का ये बौद्धिक विवाद |

इस काल चक्र में-
सब परिवर्तनशील है,
और सब स्थिर भी,
जो आज अर्थपूर्ण है,
वो कल निरुपयोगी होगा,
जो कल परम्परा थी,
वो आज स्वच्छन्द है |

सब कुछ यहीं है,
हर क्षण,हर पल,
कभी शूक्ष्म रूप में,
कभी प्रचण्ड आकार में,
कभी संकुचित दायरे में,
कभी असीम तथ्य में |

ये ही सुघड़ता है,
ये ही विशिष्टता है,
इस जीवन की |

सोच : काल : दर्शन