inspiration, philosophy, poetry

इतिहास

इतिहास ये –
गेरुआ सा,
धुँधला सा,
घटता हुआ |
ईमारतें टूटी फूटी सी,
दीवारें भी दरारों भरी,
धरोहर फिर भी मज़बूत,
स्तम्भ ये अडिग खड़े हुए \
पत्थरों पर जमी वक़्त की काई,
ज़मीन पर पनपती प्रकृति,
ये संतुलित सा आकार,
ना अब तक बंजर हुआ,
ना ही बसेरा बना |
प्रदीप्ति

दर्शन, inspiration, philosophy

आभास

ठहरे से इस पल में,
सदियों का प्रवाह शामिल है,
सूने से इस परिवेश में भी,
विगत हलचल ओझल है,
टूटी सी इन दरारों में से,
बुरादे की तरह झड़ते हैं,
कई दस्ताँनें पुरानी,
परत दर परत ये ज़मीन,
छुपाए हुए है राज़ कई,
जहाँ आज हम खड़े हैं,
वहाँ कल दौड़ा होगा,
इस ख़ामोश प्रांगण में,
गूँज है बीते ज़माने की,
इतिहास नज़र आ ही जाता है,
महसूस हो जाती है भूतकाल भी,
बस ज़रूरत है ठहरने की,
कुछ देर सब कुछ भुलाकर,
उस तथ्य को
ठहरे से इस पल में,
सदियों का प्रवाह शामिल है,
सूने से इस परिवेश में भी,
विगत हलचल ओझल है,
टूटी सी इन दरारों में से,
बुरादे की तरह झड़ते हैं,
कई दस्ताँनें पुरानी,
परत दर परत ये ज़मीन,
छुपाए हुए है राज़ कई,
जहाँ आज हम खड़े हैं,
वहाँ कल दौड़ा होगा,
इस ख़ामोश प्रांगण में,
गूँज है बीते ज़माने की,
इतिहास नज़र आ ही जाता है,
महसूस हो जाती है भूतकाल भी,
बस ज़रूरत है ठहरने की,
कुछ देर सब कुछ भुलाकर,
उस तथ्य का बोध करने की,
जो गुप्त ही रह जाता है,
उन लोगों के लिए,
जो सदैव वक़्त के प्रतिकूल,
यूँही भागते रहते हैं,
ना ही पल जीते हैं,
ना ही स्मृतियाँ बनाते हैं |

आभास : इतिहास : ठहराव