inspiration, poetry, Soulful

जीवंत

इस अंतारंग के संताप को,इस कदर घोला तुमने,अपने महासागर रुपी प्रेम में,जैसे घुलती हो ये जमी उंगलियाँ,इन ऊन के धागों से बुने दस्तानों में,जो सौम्य सा सौहार्द देते हैं,दिसंबर की ठिठुरती ठंड में |और यूँ बेपरवाह सी जीती हूँ मैं अब,ना सूरज के उगने की चिंता होती है,ना ही कलियों के खिलने की चाह |
अब तो आभास होता है,एक क्रान्ति सा परिवर्तन का,इस अंतर्मन में,जिसे सदियों से जकड़ रखा था,कई दानावों ने,जो कुचलते रहे सोच को,छीनते रहे शान्ति,औरमेरे काल्पनिक उल्लास को भी |आज,आखिरकर,मैं उन्मुक्त हूँ,निरंकुश और श्वसन,हाँ!आख़िरकार,मैं सही मायने में जीवंत हूँ |

दर्शन, inspiration, philosophy

क्या?

क्या पँखुड़ी फूल से जुदा है?क्या कली को अपना कल पता है?क्या बहार पतझड़ से डरती है?क्या बंजर ज़मीन फूटने से कतरती है?क्या नदी ठहरना चाहती है?क्या सागर बहना को तरसता है?क्या आकाश सूर्य से रंग चुराता है?क्या सूर्य बादलों पे प्यार जताता है?क्या चाँद रोज़ बेनक़ाब होना चाहता है?क्या सूरज कुछ दिन विश्राम करना चाहता है?क्या हवा अपनी गति की मोहताज होती है?क्या बारिश की बूँदों में भी प्यास होती है?क्या रात को दिन से ईर्ष्या होती है?क्या शाम को अपने अस्तित्व की चिंता होती है?क्या फूलों को अपनी महक पे अभिमान होता है?क्या पर्वत को अपनी विशालता पे गर्व होता है?क्या सूखे फूलों को फिर से खिलने की इच्छा होता है?क्या टूटी लहरें फिर से उभरना चाहती हैं?क्या सुलगता लावा भी ठंडकता चाहता है?क्या बर्फ़ की चादर भी गर्माहट चाहती है?क्या कोयला हर बार हीरा बन पाता है?क्या टूटा कॉंच फिर से जुड़ पाता है?क्या दर्द को दवा की ज़रूरत होती है?क्या दुआ हर बार पुरी होती है?क्या ये उदासी इतनी ज़रूरी होती है?क्या ये ख़ुशी एक मजबूरी होती है?क्या ये अश्क़ कमज़ोरी होते हैं?क्या ये प्रेम यूँही सदैव रहता है?क्या एक दूजे से मिलना तय होता है?क्या ये रिश्ते अकेलेपन से कीमती हैं ?क्या ये अपने गैरों से क़रीब होते हैं?क्या पहचान अनजान होना चाहती है?क्या अनजान हमेशा के लिए जुड़ना चाहते हैं?क्या खोना जीवन का दस्तूर होता है?क्या पाना हमेशा स्वार्थ होता है?क्या है और क्या नहीं?क्यूँ है और क्यूँ नहीं?कब है और कब नहीं?इसका तो पता नहीं,मगर,ये सवाल यूँही उठते रहेंगे,कुछ का जवाब मिल जाएगा,कुछ यूँही रहस्य बनके रहेंगे |

क्या : रहस्य : सवाल

दर्शन, poetry, Soulful

आलिंगन और अश्क़

Image source : internet

जब सागर सा गहरा ये दर्द,

भीतर रहता हो अदृश्य,

घुटता हुआ हर स्वाश में,

रुकता ठहरता मगर फिर भी अस्थिर सा,

बेचैन और सा बहने के लिए,

करता इंतज़ार सदियों तक,

थोड़ा थोड़ा यूँ खिसकता,

जैसे चलना भी गुनाह हो कोई,

इस कदर बढ़ती रहती उसकी कसक,

प्रबल और प्रचण्ड बन जाती,

वक़्त के साथ |

जब मिलता अवसर,

एक लम्बे अंतराल के बाद,

वो बहती नहीं अब,

बस फूट जाती,

किसी तूफ़ान की तरह |

उसे कर पाता नियंत्रित,

सिर्फ़ आलिंगन,

कोमल स्पर्श और सौहार्द भरा,

फिर बह पाता ये दर्द,

अश्कों की धारा में,

उस वक़्त तक,

जहाँ सुकून भर जाए फिर से,

हर स्वाश में |

आलिंगन : अश्क़ : दर्द

दर्शन, inspiration, philosophy, poetry

कुछ

कुछ पूरा हुआ,
कुछ अधूरा रहा,
कुछ छूट गया,
कुछ बाकी है,
कुछ मिल गया,
कुछ खाली है,
कुछ पास है,
कुछ दूर हुआ,
कुछ ख्वाहिशें थी,
कुछ मजबूरियाँ रहीं,
कुछ चाहते थी,
कुछ रंजिशे रहीं,
कुछ सुकून मिला,
कुछ तड़प रही,
कुछ बातें थी,
कुछ ख़ामोशी भी,
कुछ गर्माहट रही,
कुछ ठंडक भी,
कुछ तक़लीफ़ रही,
कुछ स्तब्ध भी,
कुछ चलता रहा,
कुछ रुक गया,
कुछ जलता रहा,
कुछ बुझ गया,
यूँही ज़िन्दगी में,
हर पल-
कुछ ना कुछ रहा,
और
कुछ ना कुछ नहीं |

ज़िन्दगी : सोच : पल

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इश्क़

ये तो वो ही जाने जिन्हें इश्क़ हुआ है,
की फासलों का कुछ अलग ही मज़ा है,
दिन और रात बस यही एक नशा है,
बस ख्यालों में एहसास कर पाना लगती एक मीठी सज़ा है,

दिल की गहराईयों में जो दर्द छुपा है,
ये इश्क़ ही उस मर्ज़ की दवा है,
इंतेज़ार उस मिलन के लम्हे का लम्बा ही सही,
मगर अब किस्मत पे यकीन होने लगा है,

चाहत अगर सच्ची हो तो वो रब भी सुनता है,
दुआओँ और इबादत का शायद येही नतीजा है,
इतनी खुशनुमा कभी ये आँखें ना थी,
किसीकी बेकरारी में इस कदर उलझी ये साँसें ना थी l

दीदार जिस दिन होगा उस दिलनशीं का,
ना जाना कैसे संभालेंगे खुदको,
सिमट जाएंगे खुद में ही शर्म से,
या खुदसे लिपटा हुआ पाएंगे उसको l

इश्क़ : जज़्बात : जीवन