दर्शन, poetry, Soulful

आलिंगन और अश्क़

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जब सागर सा गहरा ये दर्द,

भीतर रहता हो अदृश्य,

घुटता हुआ हर स्वाश में,

रुकता ठहरता मगर फिर भी अस्थिर सा,

बेचैन और सा बहने के लिए,

करता इंतज़ार सदियों तक,

थोड़ा थोड़ा यूँ खिसकता,

जैसे चलना भी गुनाह हो कोई,

इस कदर बढ़ती रहती उसकी कसक,

प्रबल और प्रचण्ड बन जाती,

वक़्त के साथ |

जब मिलता अवसर,

एक लम्बे अंतराल के बाद,

वो बहती नहीं अब,

बस फूट जाती,

किसी तूफ़ान की तरह |

उसे कर पाता नियंत्रित,

सिर्फ़ आलिंगन,

कोमल स्पर्श और सौहार्द भरा,

फिर बह पाता ये दर्द,

अश्कों की धारा में,

उस वक़्त तक,

जहाँ सुकून भर जाए फिर से,

हर स्वाश में |

आलिंगन : अश्क़ : दर्द

दर्शन, inspiration, Mythology, poetry

धारा


जल के प्रवाह अनेक,
कभी समतल शालीन स्थिर,
एक ताल की तरह,
कभी चँचल चहकता हुआ,
एक नादान सी नदिया की तरह,
कभी प्रचण्ड प्रबल रूप लिए,
समुन्दर की लहरों की तरह,
कभी कल कल गाता गीत कोई,
एक झरने की तरह |
कभी एक लकीर सी धारा बन जाए,
कभी एक टेढ़ा मेढ़ा किनारा बन जाए,
कभी मीलों तक यूँ फैलता हुआ,
किसी क्षितिज की तलाश में,
कभी ओक भर में यूँ समाता हुआ,
किसी तृष्णा तृप्ति की आस में,
कभी ये एक फुहार सा,
तो कभी एक बौछार सा,
कभी ये बूँद बूँद सा,
तो कभी ये कतरा कतरा सा |
जल के प्रवाह हैं कई,
हर प्रवाह है निराला,
कभी स्रोत को छोड़ता,
कभी गंतव्य को ढूँढता,
कभी रुकता,
कभी ठहरता,
कभी मुड़ता,
कभी घूमता,
कभी गिरता,
कभी उछलता,
कभी बहता,
कभी लेहलहता,
सावन में बरसता हुआ,
बसंत में पिघलता हुआ,
ग्रीष्म में उबलता हुआ,
शीत में जमता हुआ |

प्रवाह : धारा : जल