philosophy, Shayari, Souful, Soulful

उलझन

कैसे करें ऐतबार इस इश्क़ पर,

यहाँ तो मेहताब भी,

हर रात अपना रूप बदलता है,

कैसे भरें साँसें सुकून की,

यहाँ तो बिन मौसम भी,

बादल तड़पकर बरसता है,

कैसे लाएँ आस इस दिल में,

यहाँ तो ठिठुरती सर्दी में भी,

पेशानी से टप टप पसीना निकलता है,

कैसे मनाए इस रूठे मन को,

यहाँ तो बसंत की बेला में भी,

बस आलूदगी का धुँआ चलता है,

कैसे माने की नसीब अच्छा है हमारा,

यहाँ तो सितारों भरी खूबसूरत रात में भी,

सिर्फ़ शहर की नक़ली रोशनी का नज़ारा मिलता है,

कैसे लाएँ इन आँखों में ठंडक,

यहाँ तो शान्त पानी के नीचे भी बवंडर पलता है,

कैसे दे इस रुह को तस्सली,

यहाँ तो मज़बूत चट्टानों में भी,

अन्दर ही अन्दर खोकलापन पनपता है |

उलझन : ज़िन्दगी : सोच

inspiration, philosophy, poetry

चाय

सावन का मदमस्त मौसम,

धुंध से भरा हुआ ये समा ,

मगर फिर भी,

कोरी सी इस सुबह में ,

इमामदस्ते की वो गूँजती सी आवाज़,

कुटती हुई अदरक की,

महकती हुई ताज़गी,

सर सर करता पानी उस पतीले में,

उबाल आता हुआ वो गेरुआ रंग,

गाढ़ा होता धीमी आँच पर,

छलनी से प्याली में गिरती हुई वो धारा,

तैयार है पेश होने को,

करारी मट्ठी या कुरकुरे पकौड़ों के साथ,

छोटी छोटी चुस्कियों,

और लम्बी लम्बी बातों के साथ,

मिट्टी के कुल्हड़ में,

बारिश की बूँदों के साथ,

और मेरा यूँ,

लुत्फ़ उठाना इस एहसास का |

किसीने सच ही कहा है,

चाय की बात ही निराली है |

चाय : बारिश : लुत्फ़