दर्शन

दोपहर

जीवन की एक हक़ीक़त ऐसी भी |

पगदण्डी और धूप

दोपहर

अप्रैल की 40 डिग्री वाली गर्मी का था कुछ ऐसा नज़ारा,

दोपहर के 2 बजे वाली धूप में सुलगता था शहर सारा,

तपती काली सड़क के उजले उजले से वो किनारे,

मगर पगदण्डी पर बनते ना जाने कितने अँधेरे भरे नज़ारे,

कोई फटी बोरी पर करता है चीज़ों की नुमाइश,

कोई काठ के टुकड़ों पर रखता अपनी हर अधूरी ख़्वाहिश,

कोई पुरानी चादर का बिस्तर है सजाता,

कोई टीन के पट्टे को अपनी छत है बनाता,

कोई मैले पानी से रगढ़कर धोता यूँ टूटे फूटे से बर्तन,

कोई किफ़ायत से यूँ खाता गैरों की दी हुई झूटन,

कोई दुआ के बदले सिक्के माँगता,

कोई बार बार पगदण्डी का दायरा लाँघता,

कोई बारिकी से खंगालता कचरे का खज़ाना,

कोई गिरता पड़ता चिल्लाता ना जाने कौन सा अफसाना,

कोई यूँही बैठा रहता यूँही शुष्क निशब्द,

हर कोई नज़र आता जैसे हो अपनी किस्मत से बद्ध,

ना ही कोई बसेरा, ना ही कोई सहारा,

सड़क की इस पगदण्डी पर ही बीत जाता जीवन सारा |

जीवन : हक़ीक़त : धूप

inspiration, poetry

मेरा देश

ये भारत नहीं, सब्र और समर्पण की मिसाल है |🙏🙏

भारत

मेरा देश 
सौंधी मिट्टी और तप्ति धूप सा,

 ये प्यारा देश मेरा,

जहाँ पल पल सिक्ता सब्र,

आँच पर अभाव के, 

बचपन में खिलौेने का,

शिक्षा, और सुरक्षा का,

यौवन में नौकरी का,

व्यापार का, और परिवार का,

स्त्री के मान का,

वृध्द के सम्मान का,

गरीब की भूक का,

बेघर के बसेरे का |

इंतज़ार और उम्मीद,

कुछ खुद से,

कुछ सरकार से,

कुछ आत्मबल से, 

कुछ दरख़्वास्त से |

सौंधी मिट्टी सा ये,

इस ताप को राहत देता,

पहली बारिश की बौछार हो जैसे,

सब्र की इस आग को, 

हौले हौले शाँत कर देता |

देश: भारत: सब्र