poetry

सावन

सावन में जब जब मेघ बरसते हैँ,
नैनों के समंदर में आकर बसते हैँ,
वो अधूरे से ख्वाब,
जो अब लहरों की तरह उचकते हैँ,
ज़िन्दगी की नाव इन्हीं पर चलती है,
कभी हिलती, कभी उछलती,
कभी झूलती, कभी सँभलती,
मंज़िल की चाह में हर तूफ़ान से लड़ती |

सावन

दर्शन, inspiration, philosophy, poetry

वक़्त

वक़्त पानी सा बहता गया,
जीवन की नाव चलती गयी,
कई छोर छूटते गए,
किनारे भी धुंदले होते गए,
और अब ये मंज़र है,
कि गहराई रास आने लगी है,
अब ना किसी छोर की तमन्ना,
ना ही किसी किनारे की आस बची है |