poetry, Soulful

महताब

ये इश्क़ भी महताब सा है,
जो इस अँधेरी ज़िन्दगी में,
अपने नूर से एक जगमगाहट तो ले आता है,
मगर जब इसे पाना चाहो,
तब हर बार छूटता सा चला जाता है,
जैसे कोई तिलस्मी छल हो,
जो पास होकर भी साथ नहीं होता,
बस एक दिलकश एहसास बन कर,
वजूद बना लेता है अपना,
इस दिल के दरमियाँ,
और ज़ख्म -ए -जिगर देकर,
अपने निशान छोड़ जाता है,
ताउम्र के लिए |

इश्क़ : महताब : ज़िन्दगी

inspiration, poetry, Souful

महताब

हर दिल की आरज़ू, हर मन की ज़ुस्तज़ू, है मोहब्बत | महताब जगाता है ये हर रात |

महताब

रात : मोहब्बत : जज़्बात

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ये चाँदनी – एक नज़्म

नूर की ख़्वाहिश किसे नहीं होती | हमें भी है – एक नज़्म इसी ख़्वाहिश के नाम |


उधर नूर उस मेहताब का, 

छुपाता बदली का ये नक़ाब, 

इधर दीदार की तलबगारी में, 

रश्क़ करता ये मन,

 नज़रों में ही बुन लेता ख़्वाब, 

इसी चाह में, 

कि मिल जाए  कुछ राहत, 

इस दिल-ए-बेकरारी को |
“कुछ सुकून तुम रख लो, 

कुछ हमें बक्श दो, “

कहता हुआ ये मन, 

दम भरता धीमें धीमें, 

जब झिलमिल आँखें मूँद लेता, 

तभी फ़िज़ा की एक शरारत, 

मुकम्मल कर देती उस ख़्वाहिश को |

और, 

उस माहेरु की एक झलक पाकर,  

ये महदूद भी बेशुमार हो जाता |

©प्रदीप्ति 

नूर: माहेरु: ख़्वाहिश

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मरासिम

उसूल ज़रूरी हैँ या जज़्बात? इसी कश्मक़श को ज़ाहिर करने की कोशिश की है एक नज़्म से |


वक़्त,

वक़्त,
एक कलम की तरह,

ज़िन्दगी की तख़्ता-ए-स्याही पर,

लिखता है हिब-ए-मरासिम के फ़साने,

लेकिन,

कुछ आसान सा नहीं नज़र आता,

इस कलम का इज़हार-ए-इश्क़,

कुछ सिमटी सी नज़र आती हैं,

जज़्बातों की ये लकीरें भी, 

क्योंकि रुख बदल देती है उनका,

ये नबीना असूलों की हवा,

और तब्दील कर देती हैं, 

हयात इस पाक इश्क़ की |
बस कुछ अधूरे टूटे लफ़्ज़ बाकी रह जाते हैं,

और ओंझल हो जाती है वो हसीन दास्ताँ भी |

मगर फिर भी, 

ये झिलमिल आँखें बयाँ कर जाती हैं, 

 दर्द-ए-दिल की उस कसक को भी,

जिसे तख़्ता-ए-स्याही पे ना लिख पाए कभी |

वक़्त : उसूल : जज़्बात