दर्शन, philosophy, poetry

पत्थर

पत्थर में उतकीर्ण कहानियाँ,
और तरशे हुए ये स्तम्भ,
भिन्न भिन्न आकार की ये कड़ियाँ,
जैसे प्रणाली हो जीवन शैली की,
घटित हुई हो जो,
भूत काल में,
ले जाती है हमें,
उस वक़्त में,
और बतलाती है मौन होकर भी,
दास्तान –
सभ्यता की,
संस्कृति की,
धर्म की,
कर्म की,
सत्य की,
मिथ्या की,
विजय की,
पराजय की,
व्यक्ति की,
समाज की,
उत्थान की,
पतन की,
उल्हास की,
ग्लानि की,
काल चक्र के सार की,
जो परिवर्तनशील होकर भी,
दोहराता है वही क्रम,
अलग अलग कहानियों के रूप में |

इतिहास : कहानी : पत्थर

दर्शन, inspiration, philosophy

कारीगर

सार्थक है हर जीवन, सार्थक है हर रूप |

पत्थर की चट्टाने खड़ी थी,

सदियों से अडिग और स्थिर,

वहाँ पहुँचा एक कारीगर,

लेके अपने पैने नोकीले औज़ार,

और

आया उसे एक विचार,

कि मैं तराशु इन पत्थरों को,

तोड़कर इस चट्टान का आकार |

फिर टुकड़े टुकड़े हुए कई,

लगा जैसे तबाही मची हो कोई,

मगर हर टुकड़ा नायाब था,

बनने को तैयार एक रूप,

कोई बना हँस तो कोई सिँह,

कोई बना कछुआ तो कोई सर्प,

कुछ लम्बे टुकड़े ने स्तम्भ का रूप लिया,

जो जुड़कर बने एक धरोहर,

एक अनूठे इतिहास की,

जो लिखा गया पत्थरों में,

और जिया अरसों तक,

कुछ टुकड़े अनोखे थे,

उन्होंने लिया दिव्य स्वरुप,

और बन गए मूरत भगवान की,

कुछ टुकड़ों ने खुद को टूटा पाया,

व्यर्थ लगने लगा उनको उनका अस्तित्व,

उनका बना ना कोई भी आकार,

वो तब्दील किए गए कणों में,

और उन बने हुए रूपों की दरारों के मरहम बनें,

ऐसे साकार हुआ उनका जीवन,

हर कण का,

हर टुकड़े का,

हर चट्टान का,

और

हर कारीगर का भी |

पत्थर : कारीगर : दर्शन