
जैसे प्रवाह, वृद्धि के अंतर्गत,
विराजमान एक स्थिर रहस्य,
जैसे ध्वनि, कथन के भीतर,
विद्यमान एक गूढ़ मौन,
वैसे ही नश्वर देह के अन्दर,
स्तिथ एक मर्म अमृत |
इस जीवन में -जो प्रत्यक्ष है,
वो पूर्ण सत्य नहीं,
और
जो परोक्ष है,
वो अर्द्ध मिथ्या नहीं |
जीवन : प्रत्यक्ष : परोक्ष