दर्शन, inspiration, philosophy, poetry

सन्देश

© tulipbrook @Kanhan Maharashtra

बादल के लिफ़ाफ़े में छुपाकर,

आज रोशनी भेजी है,

इस सूने तन्हा आसमान ने |

और डाकिया बनी है,

मदमस्त सी ये फ़िज़ा,

ताकि मीलों के ये फ़ासले,

आसानी से तय हो सके,

मगर शुल्क लगाया इस मौसम ने,

कुछ हिस्सेदारी अपनी भी माँगी,

ले ली कुछ किरणें फिर,

और बाकी वहीं रहने दी |

इस प्यारी सी सौगात की,

अभिग्राही बनी है ये धरा,

जो इस सन्देश को पाकर,

प्रज्वलित हो उठी,

स्वर्णिम सी हया लिए |

दर्शन, inspiration, philosophy

क्या?

क्या पँखुड़ी फूल से जुदा है?क्या कली को अपना कल पता है?क्या बहार पतझड़ से डरती है?क्या बंजर ज़मीन फूटने से कतरती है?क्या नदी ठहरना चाहती है?क्या सागर बहना को तरसता है?क्या आकाश सूर्य से रंग चुराता है?क्या सूर्य बादलों पे प्यार जताता है?क्या चाँद रोज़ बेनक़ाब होना चाहता है?क्या सूरज कुछ दिन विश्राम करना चाहता है?क्या हवा अपनी गति की मोहताज होती है?क्या बारिश की बूँदों में भी प्यास होती है?क्या रात को दिन से ईर्ष्या होती है?क्या शाम को अपने अस्तित्व की चिंता होती है?क्या फूलों को अपनी महक पे अभिमान होता है?क्या पर्वत को अपनी विशालता पे गर्व होता है?क्या सूखे फूलों को फिर से खिलने की इच्छा होता है?क्या टूटी लहरें फिर से उभरना चाहती हैं?क्या सुलगता लावा भी ठंडकता चाहता है?क्या बर्फ़ की चादर भी गर्माहट चाहती है?क्या कोयला हर बार हीरा बन पाता है?क्या टूटा कॉंच फिर से जुड़ पाता है?क्या दर्द को दवा की ज़रूरत होती है?क्या दुआ हर बार पुरी होती है?क्या ये उदासी इतनी ज़रूरी होती है?क्या ये ख़ुशी एक मजबूरी होती है?क्या ये अश्क़ कमज़ोरी होते हैं?क्या ये प्रेम यूँही सदैव रहता है?क्या एक दूजे से मिलना तय होता है?क्या ये रिश्ते अकेलेपन से कीमती हैं ?क्या ये अपने गैरों से क़रीब होते हैं?क्या पहचान अनजान होना चाहती है?क्या अनजान हमेशा के लिए जुड़ना चाहते हैं?क्या खोना जीवन का दस्तूर होता है?क्या पाना हमेशा स्वार्थ होता है?क्या है और क्या नहीं?क्यूँ है और क्यूँ नहीं?कब है और कब नहीं?इसका तो पता नहीं,मगर,ये सवाल यूँही उठते रहेंगे,कुछ का जवाब मिल जाएगा,कुछ यूँही रहस्य बनके रहेंगे |

क्या : रहस्य : सवाल

दर्शन, inspiration, philosophy, Soulful

अद्भुत नज़ारा

Source : Aakash Veer Singh Photography

तिरोहित हो रहा है हौले हौले,

शिखर के शीर्ष पर कान्तिमान,

कनक का ये रमणीय आभूषण,

हो रहा है क्षण क्षण परिवर्तित,

इसका रंग, प्रकाश, और आकार |
इसके आलेख का सिरा,

धीरे धीरे छोड़ रहा है,

गगन की कोमल ओढ़नी पर,

पीले नारंगी रंग का मिश्रण,

और

बादलों की विषम आकृति में,

यूँ मृदुलता से घुल रहा है,

वक़्त की धीमी आँच पे,

चाशनी सा मदहोश करने वाला,

एक अद्भुत नज़ारा बनाने |

नज़ारा : प्रकृति : सुकून

philosophy, Shayari, Souful, Soulful

उलझन

कैसे करें ऐतबार इस इश्क़ पर,

यहाँ तो मेहताब भी,

हर रात अपना रूप बदलता है,

कैसे भरें साँसें सुकून की,

यहाँ तो बिन मौसम भी,

बादल तड़पकर बरसता है,

कैसे लाएँ आस इस दिल में,

यहाँ तो ठिठुरती सर्दी में भी,

पेशानी से टप टप पसीना निकलता है,

कैसे मनाए इस रूठे मन को,

यहाँ तो बसंत की बेला में भी,

बस आलूदगी का धुँआ चलता है,

कैसे माने की नसीब अच्छा है हमारा,

यहाँ तो सितारों भरी खूबसूरत रात में भी,

सिर्फ़ शहर की नक़ली रोशनी का नज़ारा मिलता है,

कैसे लाएँ इन आँखों में ठंडक,

यहाँ तो शान्त पानी के नीचे भी बवंडर पलता है,

कैसे दे इस रुह को तस्सली,

यहाँ तो मज़बूत चट्टानों में भी,

अन्दर ही अन्दर खोकलापन पनपता है |

उलझन : ज़िन्दगी : सोच

दर्शन, inspiration, philosophy

प्रतिबिम्ब

© Aakash Veer Singh Photography

जब बना ये जलाशय एक दर्पण,

इस अनछुए आसमान का,

तब खुले अनकहे राज़ कई,

और इन बादलों ने बयाँ किए,

अनसुने उनसुलझे रहस्य कई,

जैसे सम्मुख आ गया हो अतीत,

वर्तमान का नीला दामन ओढ़े,

और बैठा हो तैयार इस इंतज़ार में,

कि कोई तो उजागर करे,

इस प्रच्छन्न जज़्बात को,

गहरे काले अंधकार जैसा,

जिसे समझने का हौसला,

सिर्फ़ प्रेम में होता है,

जैसा हुआ है,

इस जलाशय को,

उस आकाश से |

प्रतिबिम्ब : जलशय : आसमान

philosophy, poetry, Soulful

गोधुली की शरारत

शाम का समय हमेशा एक अलग ही आभास लेके आता है | कुछ छूटता चला जाता है, कुछ मिलने लगता है | मन बेचैन होता है और दिल शरारती | असमंजस सी बनी रहती है | एक अनोखी सी असमंजस |

बादलों ने फिर एक शरारत की,

खेल आँख मिचोली सूरज संग,

उजागर कीए दबे दबे कई अरमान,

इस दिल – ए – नादान की अधूरी चाहत की,

लगा देखकर इस धुंदले से नज़ारे को,

जैसे कोई प्रेम मिलाप हुआ हो अभी,

बस घुलता जा रहा हो सूरज यूँही ,

इन घने बादलों में कहीँ,

छोड़कर अपना सुनहरा चमकता रंग,

इन फिँकें नीले बादलों में कहीँ,

फिर धीरे धीरे श्याम रंग में रम रहा हो,

इन गहरे देह के बादलों में कहीँ |

लगता है जैसे,

ये मिलन है एक समर्पण का इस सूरज के,

इन गोधुली के बादलों में कहीँ |

बादल : सूरज : प्रेम