अज्ञानता भावहीन है,
ज्ञात होना भावपूर्ण,
प्रथम हैं इस श्रेणी में,
भाव शंका के, भय के,
एवं आश्चर्य के |
बढ़ती तृष्णा भी है,
और असमंजस भी |
अगर असमंजस विजयी हुई,
तो भय प्रबल होता जाएगा,
अगर तृष्णा विजयी हो जाए,
तो फिर ये भाव परिवर्तित होते हैं,
स्पष्टता में, निर्भीकता में,
और धीरे धीरे व्यक्ति,
संभाव की स्तिथि तक पहुँच जाता है,
ये सफ़र ज्ञात से बोध का है |
Tag: बोध
आलोक

तड़प तिमिर त्याग की,
तृष्णा ताप तंकन की,
आस आलोक आलिंगन की,
आकांक्षा अंकुरित अंतर्मन की,
वृहद विवेचन वैराग्य का,
सरल संलाप साध्य का,
सफ़र सुदृढ़ स्तिथि का,
विराम व्याकुल वृत्ति का,
प्राप्ति पुण्य परमानन्द की |
अलोक : ताप : परमानन्द
सुकून

ना जाने क्या पाने निकला हूँ,
इस ओर जो खिंचा चला आया,
ढूंढ रही हैँ नज़रें उस सुकून को,
सहज बोध में तो जिसे पा लिया था,
मगर अब उसे यथार्थ में जीना चाहता हूँ,
कल्पना की असीमता में जो अनुभव किया,
अब उसे प्रत्यक्ष के दायरे में ढालना चाहता हूँ,
चल पड़ा हूँ अब इस राह पर,बनाने स्मृतियाँ कई,
तस्वीरों में क़ैद कर के,उस सुकून को,
जिसका बोध ये मन,
कर चूका था कभी |
सुकून : मन : तस्वीर
प्रकृति की सौगात

सूर्यास्त याद दिलाता है कि,
सुंदरता जीवित रहती है हर पल,
भिन्न भिन्न प्रकारों में,
अलग अलग तारीको से,
उजागर करते हुए भीतर,
हज़ारों ख्वाहिशें,
अनुभूति कराता है,
आनन्द के ये क्षण,
मगर अबोधि जीव,
रहते हैं हमेशा शंका में,
प्रत्यक्ष
और
अनुमान के |
सूर्यास्त : प्रकृति : खूबसूरती