दर्शन

अहम् की अपूर्ण यात्रा

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अहम् की अपूर्ण यात्रा

एक सुर्ख सिंदूरी एहसास लिए है ये रैना,
जैसे अतीत की स्थिर स्मृतियाँ,
अस्थायी सा जंग लिए हो कोई,
और वर्तमान के ये गतिशील जज़्बात,
पुलकित भाव उजागर कर रहें हो भीतर |

जैसे जैसे मेरी सतह निस्तेज होती गई,
आतंरिक चुभती विषकत्ता को हटाती हुई,
वैसे वैसे वो प्रकट करती गई,
एक परत कोमल निश्चयात्मकता की |
ये भंजन ही वास्तविक उन्मुक्ति है,
‘अहम्’ की, इस प्रतिबंधित जीवन की बेड़ियों से |

ये अवखंडन अब एक आनंदमयी अनुभव होने लगता है,
और पुर्ज़ा पुर्ज़ा यूँ बिखरना,
स्वीकृति भाव को उत्पन्न करता है,
जो ‘अहम्’ को सूत्र के उद्गम में,
विलीन होने के लिए,
प्रोत्साहित करता रहता है |

मगर कालचक्र का ये प्रभाव,
‘अहम्’ को दोबारा समावेश में लेता है,
भौतिकता को अनुभव करने के लिए,
पुनः किसी काल में जन्म लेने के लिए,
किसी और रूप और नाम के साथ,
एक नूतन अस्तित्व में,
जो फिर से बाँध देगा,
इस जीवन को,
एक सीमित अवधि के लिए,
भौतिकता के जटिल पंक में |

मगर हर बार ‘अहम्’ पहुँचेगा इस दायरे के सिरे पर,
अभिज्ञता के आयाम से दूर होकर,
एक अज्ञात मक़ाम में प्रवेश करके,
जो इस भौतिक अवधारणा के परे होगा,
पुनः वही सुर्ख सिंदूरी एहसास दिलाता हुआ,
जैसे इस रात्रि में हुआ है |

प्रदीप्ति

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दर्शन, philosophy

दर्शन

अज्ञानता भावहीन है,
ज्ञात होना भावपूर्ण,
प्रथम हैं इस श्रेणी में,
भाव शंका के, भय के,
एवं आश्चर्य के |
बढ़ती तृष्णा भी है,
और असमंजस भी |
अगर असमंजस विजयी हुई,
तो भय प्रबल होता जाएगा,
अगर तृष्णा विजयी हो जाए,
तो फिर ये भाव परिवर्तित होते हैं,
स्पष्टता में, निर्भीकता में,
और धीरे धीरे व्यक्ति,
संभाव की स्तिथि तक पहुँच जाता है,
ये सफ़र ज्ञात से बोध का है |

दर्शन, philosophy, Spiritual

आलोक

Credits : Aakash Veer Singh Photography

तड़प तिमिर त्याग की,

तृष्णा ताप तंकन की,

आस आलोक आलिंगन की,

आकांक्षा अंकुरित अंतर्मन की,

वृहद विवेचन वैराग्य का,

सरल संलाप साध्य का,

सफ़र सुदृढ़ स्तिथि का,

विराम व्याकुल वृत्ति का,

प्राप्ति पुण्य परमानन्द की |

अलोक : ताप : परमानन्द

poetry, Soulful

सुकून

Source: Aakash Veer Singh Photography

ना जाने क्या पाने निकला हूँ,

इस ओर जो खिंचा चला आया,

ढूंढ रही हैँ नज़रें उस सुकून को,

सहज बोध में तो जिसे पा लिया था,

मगर अब उसे यथार्थ में जीना चाहता हूँ,

कल्पना की असीमता में जो अनुभव किया,

अब उसे प्रत्यक्ष के दायरे में ढालना चाहता हूँ,

चल पड़ा हूँ अब इस राह पर,बनाने स्मृतियाँ कई,

तस्वीरों में क़ैद कर के,उस सुकून को,

जिसका बोध ये मन,

कर चूका था कभी |

सुकून : मन : तस्वीर

inspiration, poetry

प्रकृति की सौगात

सूर्यास्त याद दिलाता है कि,

सुंदरता जीवित रहती है हर पल,

भिन्न भिन्न प्रकारों में,

अलग अलग तारीको से,

उजागर करते हुए भीतर,

हज़ारों ख्वाहिशें,

अनुभूति कराता है,

आनन्द के ये क्षण,

मगर अबोधि जीव,

रहते हैं हमेशा शंका में,

प्रत्यक्ष

और

अनुमान के |

सूर्यास्त : प्रकृति : खूबसूरती