philosophy, Shayari, Souful, Soulful

उलझन

कैसे करें ऐतबार इस इश्क़ पर,

यहाँ तो मेहताब भी,

हर रात अपना रूप बदलता है,

कैसे भरें साँसें सुकून की,

यहाँ तो बिन मौसम भी,

बादल तड़पकर बरसता है,

कैसे लाएँ आस इस दिल में,

यहाँ तो ठिठुरती सर्दी में भी,

पेशानी से टप टप पसीना निकलता है,

कैसे मनाए इस रूठे मन को,

यहाँ तो बसंत की बेला में भी,

बस आलूदगी का धुँआ चलता है,

कैसे माने की नसीब अच्छा है हमारा,

यहाँ तो सितारों भरी खूबसूरत रात में भी,

सिर्फ़ शहर की नक़ली रोशनी का नज़ारा मिलता है,

कैसे लाएँ इन आँखों में ठंडक,

यहाँ तो शान्त पानी के नीचे भी बवंडर पलता है,

कैसे दे इस रुह को तस्सली,

यहाँ तो मज़बूत चट्टानों में भी,

अन्दर ही अन्दर खोकलापन पनपता है |

उलझन : ज़िन्दगी : सोच

poetry, Souful

नूर

Source: Aakash Veer Singh photography

 नूर इस महताब का,

ज़र्रा ज़र्रा चमका रहा है,

अक्स इस शबाब का,

कतरा कतरा दमका रहा है,

इशारा इस आदाब का,

 कोई ख़ुशनुमा नज़्म गा रहा है,

नज़ारा इस बदली के हिजाब का,

पत्ते पत्ते को रिझा रहा है,

ऐसा लगता है मानो फ़लक ज़मीन से,

बेपन्हा मोहब्बत फरमा रहा है |

महताब : मोहब्बत : जज़्बात

poetry, Soulful

महताब

ये इश्क़ भी महताब सा है,
जो इस अँधेरी ज़िन्दगी में,
अपने नूर से एक जगमगाहट तो ले आता है,
मगर जब इसे पाना चाहो,
तब हर बार छूटता सा चला जाता है,
जैसे कोई तिलस्मी छल हो,
जो पास होकर भी साथ नहीं होता,
बस एक दिलकश एहसास बन कर,
वजूद बना लेता है अपना,
इस दिल के दरमियाँ,
और ज़ख्म -ए -जिगर देकर,
अपने निशान छोड़ जाता है,
ताउम्र के लिए |

इश्क़ : महताब : ज़िन्दगी