
जीवन ये गतिशील सा,
क्षण क्षण एक बदलाव है,
रफ़्तार की इस होड़ में,
कहीँ खो गया ठहराव है |
हड़बड़ी हर चीज़ की,
बेचैनी हर बात में |
ना निकल जाए ये वक़्त हाथ से,
इसलिए पल पल खोते चले जाते हैं |
ना कोई सुकून है,
ना कोई संतोष है,
बस एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा,
सबसे आगे निकलने की होड़ है |
क्या पाने निकले थे,
क्या खोते जा रहे हो,
रफ़्तार की लालसा में,
ठहराव से वंचित होते जा रहे हो |
ज़रा देखो इस नज़ारे को,
सब कुछ ठहरा हुआ,
ये जल,
ये आकाश,
और ये धरा भी |
रुक जाओ कुछ देर यहीं,
प्रतिस्पर्धा और रफ़्तार को भूलकर,
इस लालसा को त्यागर,
महसूस करते जाओ बस,
इस नज़ारे के कण कण को |
मिलते सिरे गगन, नीर, भूमि के,
जहाँ एक रंग दूसरे में विलीन होकर भी,
अपना अस्तित्व नहीं खोता,
आसमान का नीलपन,
इस पर्वत पर चढ़ता है,
पर्वत का प्रतिबिम्ब,
इस जल में झलकता है,
जल का दर्शन,
ये बादल करता है,
ज़मीन का गेरुआ रंग,
इस जल में घुलता है,
जल का कतरा कतरा,
गेरू रंग लेकर भी,
निर्मल लगता है |
ये सब जुड़े हैं,
फिर भी भिन्न हैं,
एक दूजे में मिले हैं,
फिर भी इनकी,
पृथकत्वता बरकरार है |
ज़रा रुको दो पल यहीं,
महसूस करो कुछ देर ही सही,
और देखो इन आसमान, पहाड़,
ताल, और इस ज़मीन को,
एकाग्र मन से,
तो महसूस करोगे,
एक ही भाव,
ठहराव,
ठहराव,
ठहराव |
गति : जीवन : ठहराव