
शून्य सा ही तो है ये जीवन,
जहाँ चलते हुए इस वक्रता पर,
कभी उच्चाईओं को छू तो लेते हैँ,
मगर जब शिखर पर जा पहुँचते हैँ,
एक उमंग और जोश से भरे हुए,
तभी क्षण भर में देखते देखते,
ये दिशा ही पलट जाती है,
और फिर जा पहुँचते हैँ वहीं,
उस गहरे से एक रसातल में,
जहाँ हताशा सी महसूस होने लगती है,
वहीं फिर जीवन मौका देता है,
फिर से इस शून्य को मापने का,
और फिर हर बार वही होता है,
यूँही ये जीवन शुन्य सा चलता रहता है |
दर्शन : शून्य : जीवन