दर्शन, inspiration, philosophy, poetry

सन्देश

© tulipbrook @Kanhan Maharashtra

बादल के लिफ़ाफ़े में छुपाकर,

आज रोशनी भेजी है,

इस सूने तन्हा आसमान ने |

और डाकिया बनी है,

मदमस्त सी ये फ़िज़ा,

ताकि मीलों के ये फ़ासले,

आसानी से तय हो सके,

मगर शुल्क लगाया इस मौसम ने,

कुछ हिस्सेदारी अपनी भी माँगी,

ले ली कुछ किरणें फिर,

और बाकी वहीं रहने दी |

इस प्यारी सी सौगात की,

अभिग्राही बनी है ये धरा,

जो इस सन्देश को पाकर,

प्रज्वलित हो उठी,

स्वर्णिम सी हया लिए |

शायरी, inspiration, philosophy

जीवन

© tulip_brook

एक उम्र बीत गई,

एक वक़्त गुज़र गया,

नीव गहरी होती गई,

अस्तित्व उन्नत होता गया,

जितना भी प्राप्त किया,

धीरे धीरे सब खोता गया,

बस ये अनुभव शेष रह गया-

” केवल उन्नत होना ही जीवन नहीं,

परिवर्तित होना भी है,

उत्थान होगा जहाँ भी,

वहाँ पतन भी स्पष्ट है,

अंकुरित होता है जो बीज अंधकार में,

वो रोशनी में ही पनपता है,

जीता है वो हर मौसम,

टहनी, पत्ती, पुष्प, फल, फूल बनकर,

मगर

एक एक करके सब त्यागता चला जाता है,

और फिर देखता है जब जब वो,

उस बीते वक़्त को,

तो पाता है एक ही सत्य,

कि फिर उस अंधकार में समा जाना है |

रोशनी जीवन है,

मगर अंधकार जीवन का स्रोत |

और ये सोचता हुआ,

विलीन हो जाता है वहीँ,

जहाँ से उसका उद्गम हुआ था | “

जीवन : अंधकार : रोशनी

philosophy, Shayari, Souful, Soulful

उलझन

कैसे करें ऐतबार इस इश्क़ पर,

यहाँ तो मेहताब भी,

हर रात अपना रूप बदलता है,

कैसे भरें साँसें सुकून की,

यहाँ तो बिन मौसम भी,

बादल तड़पकर बरसता है,

कैसे लाएँ आस इस दिल में,

यहाँ तो ठिठुरती सर्दी में भी,

पेशानी से टप टप पसीना निकलता है,

कैसे मनाए इस रूठे मन को,

यहाँ तो बसंत की बेला में भी,

बस आलूदगी का धुँआ चलता है,

कैसे माने की नसीब अच्छा है हमारा,

यहाँ तो सितारों भरी खूबसूरत रात में भी,

सिर्फ़ शहर की नक़ली रोशनी का नज़ारा मिलता है,

कैसे लाएँ इन आँखों में ठंडक,

यहाँ तो शान्त पानी के नीचे भी बवंडर पलता है,

कैसे दे इस रुह को तस्सली,

यहाँ तो मज़बूत चट्टानों में भी,

अन्दर ही अन्दर खोकलापन पनपता है |

उलझन : ज़िन्दगी : सोच

inspiration, philosophy, poetry

चाय

सावन का मदमस्त मौसम,

धुंध से भरा हुआ ये समा ,

मगर फिर भी,

कोरी सी इस सुबह में ,

इमामदस्ते की वो गूँजती सी आवाज़,

कुटती हुई अदरक की,

महकती हुई ताज़गी,

सर सर करता पानी उस पतीले में,

उबाल आता हुआ वो गेरुआ रंग,

गाढ़ा होता धीमी आँच पर,

छलनी से प्याली में गिरती हुई वो धारा,

तैयार है पेश होने को,

करारी मट्ठी या कुरकुरे पकौड़ों के साथ,

छोटी छोटी चुस्कियों,

और लम्बी लम्बी बातों के साथ,

मिट्टी के कुल्हड़ में,

बारिश की बूँदों के साथ,

और मेरा यूँ,

लुत्फ़ उठाना इस एहसास का |

किसीने सच ही कहा है,

चाय की बात ही निराली है |

चाय : बारिश : लुत्फ़