philosophy, poetry, Soulful

स्पर्श

उठा लेती हूँ उन्हें भी,
बड़े ही स्नेह से,
जिन्हें खुदके प्रियवर ने त्याग दिया,
मालूम है मुझे ये सच्चाई,
इस स्नेह से ये फिर घर नहीं जा पाएँगे,
मगर कुछ क्षणों का कोमल स्पर्श,
इन्हें सुकून ज़रूर देगा,
नश्वरता को आलिंगन में लेने के लिए,
स्वैच्छा से, मधुरता से,
मिट्टी में विलीन होना भी आवश्यक है,
इस काल चक्र के संचालन के लिए,
फिर उजागर होने के लिए,
किसी और रूप में,
कोई और अस्तित्व लिए,
मगर सिर्फ़  प्रेम से,
जन्म से मरण तक,
फिर जन्म लेने के लिए |

दर्शन, inspiration

इतिहास

Source : Aakash Veer Singh Photography

सब कुछ ठहरा ठहरा सा है यहाँ,

इतिहास चुप चुप सा नज़र आता है,

ये स्तम्भों का समूह,


बयाँ कर रहा है कोई दास्तान,


फ़तेह की और पतन की भी,

जीवन की विडम्बना है यह,
और एक स्पष्ट सत्य भी,

कि ठहराव में भी हलचल हो सकती है,

बंजर में भी जीने की हसरत हो सकती है,

एक नन्हा सा बच्चा यूँही,

बेफ़िक्र और मदमस्त,


दौड़ता इस इतिहास के धरातल पर,


छोड़के निशान अपने कोमल अस्तित्व की,

चला जाता है गुमनाम सा |

एक बलवान नौजवान भी,

उठाता अपने कदम इस कदर शान से,

जैसे जी रहा हो विजय की गाथा कोई,

और एक लड़खड़ता वृद्ध पुरुष,

ठहर जाता वहीं इस चिंतन में,

जैसे खो दिया हो बहुत कुछ,

थोड़ा सा पाने की लालसा में |


वर्त्तमान भी एक दिन इतिहास बनेगा,

जो छूट गया,

जो टूट गया,

वो भी एक दिन,


एक मनमोहक रास बनेगा |

इतिहास : एहसास : अस्तित्व

quotes, Soulful

याद

इश्क़ मुश्किल ना था कभी,

हालात थे,

किस्मत भी बड़ी पेचीदा निकली,

इंसान से इंसान की मुलाक़ात तो करा देती है,

जज़्बातों की लौ भी जला देती है,

मगर ना जाने क्यूँ,

एक रोज़

खुदगर्ज़ी की आँधी से सब बुझा जाती है,

वक़्त और तक़दीर के खेल के पासे ही तो हैं सब,

जो दो अनजान इस कदर मिल कर फिर अनजान बन जाते हैं,

हार दोनों की ही होती है इस खेल में,

बस फिर शुरुआत होती है दर्द को बयाँ करने की,

और यूँही मोहब्बत के कई मायूस फ़साने बन जाते हैं,

और दर्द के तड़पते तराने गुनगुनाये जाते हैं,

बस कोई नाम निगार बन जाता है, तो कोई नगमा परवाज़,

दर्द को हसीन बनाना भी एक हुनर है,

बस ये ही मान लेता है दिल,

कि तेरी मोहब्बत तो ना मिला,तेरा दिया दर्द ही सही,

तू सादिक़ ना बन सका,

कोई गिला नहीं,

तू बेईमान ही सही,

किसी नाम से तो तुझे याद रखेंगे,

खुदा से बस ये ही फ़रियाद करेंगे,

कि शुक्रिया,

मोहब्बत ना बक्शी हमें,

बेवफाई की सौगात ही सही |

याद : मोहब्बत : जज़्बात

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अपनी ज़मीन से जुड़ना

जब पहुँची अपने गाँव, तब जाना अपने अस्तित्व को, बड़े ही क़रीब से | और बैठी हुई मैं, घर के इस आँगन में, सोचती रही कुछ यूँ |

आँगन

ये आँगन टूटा फूटा सा,
और ये धरातल की दरारें, बयाँ करती हैँ दास्तान,
कुछ पुरानी यादों की, ग्लानि और अभाव से पूर्ण,
ये दीवारों के उतरता रंग,
एक व्याख्या प्रकट करते हैँ,
अधूरी ख्वाहिशें के, बिखरने की,
उलझे रिश्तों के, जकड़ने की,
कुछ खामोशियों की, कुछ सिसकियों की,
जो आज भी सुनाई देती हैँ,
ये ही आभा है, अतीत की, जो प्रत्यक्ष है, मगर समीप नहीं|
है नेत्र की सीमा से परे, मगर जाती हैँ, अंतर्मन के दायरे की ओर,
और छू जाती हैँ, उस सूक्ष्म कण को,
जो ओझल सा था, मगर असीम सा, अस्तित्व लिए हुए,
अतीत का, वर्तमान में, भविष्य तक |

ज़मीन : आँगन : अस्तित्व