
वक़्त पानी सा बहता गया,
जीवन की नाव चलती गयी,
कई छोर छूटते गए,
किनारे भी धुंदले होते गए,
और अब ये मंज़र है,
कि गहराई रास आने लगी है,
अब ना किसी छोर की तमन्ना,
ना ही किसी किनारे की आस बची है |
वक़्त पानी सा बहता गया,
जीवन की नाव चलती गयी,
कई छोर छूटते गए,
किनारे भी धुंदले होते गए,
और अब ये मंज़र है,
कि गहराई रास आने लगी है,
अब ना किसी छोर की तमन्ना,
ना ही किसी किनारे की आस बची है |
शाम का ये मलमली पर्दा,
बैंगनी गुलाबी रंग लिए,
धीरे धीरे हटने लगा है,
क्यूँकि वक़्त आ गया है,
रात के अद्भुत नाट्य का |
किरदार भी दिखने लगे अब,
कुछ धुँदले से,अधूरे से,
तैयार खड़े इंतज़ार में,
अपने अभिनय प्रदर्शन के लिए |
चाँद हया में छिपा हुआ है,
बदली की ओढ़नी लिए,
कुछ सितारे ओझल से हैं,
नज़र आएँगे कुछ देर बाद,
जब और गहरा होगा ये रंगमच,
और यूँही चलेगा रात भर,
रास इन चाँद सितारों का,
श्वेत श्याम के संगम का,
और
फिर से गिरेगा ये पर्दा,
भोर की मधुर बेला में,
वही बैंगनी गुलाबी रंग लिए |
रंगमच : पर्दा : प्रकृति