
अवशेष
एक अस्तित्व था,
जिसका
आकार भी,
रूप भी,
छवि भी,
औचित्य भी,
जो
काल बध्य होकर,
पूर्ण था,
मगर
क्षण क्षण घटता गया,
उसका आकार,
उसका रूप भी,
उसकी छवि,
उसका औचित्य भी,
और आज जो प्रत्यक्ष है,
वो सिर्फ़ अवशेष हैं,
अधूरी कहानी से,
किसीके इतिहास के,
जो सिर्फ़ तर्क वितर्क,
और अनुमान के दायरे में,
सीमित रहकर,
एक शोध का विषय बन जाएँगे,
मगर
क्या कभी भी,
इस अवशेष का,
सत्य हम जान पाएँगे?