दर्शन, inspiration, philosophy, poetry

काल

पुरातन से नूतन तक का ये अस्थिर सफ़र,
कारण और प्रभाव के ये बदलते अभिप्राय,
जीवन के ये विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोण,
व्यक्तिगत और सामजिक विचारधारा के ये द्वन्द्व,
कला और व्यापार की अनुपयुक्त प्रतिस्पर्धा,
सार्थकता और निरर्थकता का ये अनसंतुलित तराज़ू,
परंपरावाद और उदरवाद के बीच के ये बढ़ता घटता फ़ासले,
प्रत्यक्ष और परोक्ष का ये बौद्धिक विवाद |

इस काल चक्र में-
सब परिवर्तनशील है,
और सब स्थिर भी,
जो आज अर्थपूर्ण है,
वो कल निरुपयोगी होगा,
जो कल परम्परा थी,
वो आज स्वच्छन्द है |

सब कुछ यहीं है,
हर क्षण,हर पल,
कभी शूक्ष्म रूप में,
कभी प्रचण्ड आकार में,
कभी संकुचित दायरे में,
कभी असीम तथ्य में |

ये ही सुघड़ता है,
ये ही विशिष्टता है,
इस जीवन की |

सोच : काल : दर्शन

दर्शन, inspiration, philosophy

कारीगर

सार्थक है हर जीवन, सार्थक है हर रूप |

पत्थर की चट्टाने खड़ी थी,

सदियों से अडिग और स्थिर,

वहाँ पहुँचा एक कारीगर,

लेके अपने पैने नोकीले औज़ार,

और

आया उसे एक विचार,

कि मैं तराशु इन पत्थरों को,

तोड़कर इस चट्टान का आकार |

फिर टुकड़े टुकड़े हुए कई,

लगा जैसे तबाही मची हो कोई,

मगर हर टुकड़ा नायाब था,

बनने को तैयार एक रूप,

कोई बना हँस तो कोई सिँह,

कोई बना कछुआ तो कोई सर्प,

कुछ लम्बे टुकड़े ने स्तम्भ का रूप लिया,

जो जुड़कर बने एक धरोहर,

एक अनूठे इतिहास की,

जो लिखा गया पत्थरों में,

और जिया अरसों तक,

कुछ टुकड़े अनोखे थे,

उन्होंने लिया दिव्य स्वरुप,

और बन गए मूरत भगवान की,

कुछ टुकड़ों ने खुद को टूटा पाया,

व्यर्थ लगने लगा उनको उनका अस्तित्व,

उनका बना ना कोई भी आकार,

वो तब्दील किए गए कणों में,

और उन बने हुए रूपों की दरारों के मरहम बनें,

ऐसे साकार हुआ उनका जीवन,

हर कण का,

हर टुकड़े का,

हर चट्टान का,

और

हर कारीगर का भी |

पत्थर : कारीगर : दर्शन