Soulful, Sufi

दूरी – नज़दीकी

वो

फ़लक –
जो कभी हासिल ना हो सका,
मगर ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में,
सबसे आगे रहा हमेशा |

और ये ज़मीन –
जो हमेशा हमारी ही रही,
मगर हमारे साथ के लिए,
रज़ा मंदी का इंतज़ार करती रही |

इंसान को हमेशा,
कद्र और फ़िक्र,
नाक़ाबिल – ए – रसाई तोर प्यार की ही होती है |

inspiration, philosophy, poetry

इतिहास

इतिहास ये –
गेरुआ सा,
धुँधला सा,
घटता हुआ |
ईमारतें टूटी फूटी सी,
दीवारें भी दरारों भरी,
धरोहर फिर भी मज़बूत,
स्तम्भ ये अडिग खड़े हुए \
पत्थरों पर जमी वक़्त की काई,
ज़मीन पर पनपती प्रकृति,
ये संतुलित सा आकार,
ना अब तक बंजर हुआ,
ना ही बसेरा बना |
प्रदीप्ति

दर्शन, philosophy, Spiritual

नमी

सतह सुर्ख है,तृष्णा गहरी है,प्रेम का असीम समंदर है अन्दर,फिर भी ना जाने कैसी अजब कमी सी है |उठता है तूफ़ान इस कदर,हर पल फूटना चाहता हो जैसे,मगर ये अश्क़ बहते भी नहीं,दो बूँद नैनों में झलकती भी नहीं,जबकि श्वासों से लेकर देह तक इतनी नमी सी है |क्यूँ फैला है अनन्त तक,ये खालीपन ?ना अँधेरा है ना ही रोशनी,ना नज़र आता ऊपर ये आसमान,और ना ही महसूस होती नीचे कोई ज़मीन सी है |कुछ रुका भी नहीं,कुछ बहा भी नहीं,कुछ दिखा भी नहीं,कुछ छुपा भी नहीं,कोई आरज़ू भी नहीं,कोई शिकायत भी नहीं,ना ही बेबसी है,ना ही बेचैनी है,ना जाने कैसी रहस्यमयी एहसास है ये,कभी ना तृप्त होने वाली वीमोही प्यास है ये |

दर्शन, inspiration, philosophy

आभास

ठहरे से इस पल में,
सदियों का प्रवाह शामिल है,
सूने से इस परिवेश में भी,
विगत हलचल ओझल है,
टूटी सी इन दरारों में से,
बुरादे की तरह झड़ते हैं,
कई दस्ताँनें पुरानी,
परत दर परत ये ज़मीन,
छुपाए हुए है राज़ कई,
जहाँ आज हम खड़े हैं,
वहाँ कल दौड़ा होगा,
इस ख़ामोश प्रांगण में,
गूँज है बीते ज़माने की,
इतिहास नज़र आ ही जाता है,
महसूस हो जाती है भूतकाल भी,
बस ज़रूरत है ठहरने की,
कुछ देर सब कुछ भुलाकर,
उस तथ्य को
ठहरे से इस पल में,
सदियों का प्रवाह शामिल है,
सूने से इस परिवेश में भी,
विगत हलचल ओझल है,
टूटी सी इन दरारों में से,
बुरादे की तरह झड़ते हैं,
कई दस्ताँनें पुरानी,
परत दर परत ये ज़मीन,
छुपाए हुए है राज़ कई,
जहाँ आज हम खड़े हैं,
वहाँ कल दौड़ा होगा,
इस ख़ामोश प्रांगण में,
गूँज है बीते ज़माने की,
इतिहास नज़र आ ही जाता है,
महसूस हो जाती है भूतकाल भी,
बस ज़रूरत है ठहरने की,
कुछ देर सब कुछ भुलाकर,
उस तथ्य का बोध करने की,
जो गुप्त ही रह जाता है,
उन लोगों के लिए,
जो सदैव वक़्त के प्रतिकूल,
यूँही भागते रहते हैं,
ना ही पल जीते हैं,
ना ही स्मृतियाँ बनाते हैं |

आभास : इतिहास : ठहराव

दर्शन, inspiration, philosophy, Soulful

ठहराव

Source : Aakash Veer Singh Photography

जीवन ये गतिशील सा,

क्षण क्षण एक बदलाव है,

रफ़्तार की इस होड़ में,

कहीँ खो गया ठहराव है |

हड़बड़ी हर चीज़ की,

बेचैनी हर बात में |

ना निकल जाए ये वक़्त हाथ से,

इसलिए पल पल खोते चले जाते हैं |

ना कोई सुकून है,

ना कोई संतोष है,

बस एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा,

सबसे आगे निकलने की होड़ है |

क्या पाने निकले थे,

क्या खोते जा रहे हो,

रफ़्तार की लालसा में,

ठहराव से वंचित होते जा रहे हो |

ज़रा देखो इस नज़ारे को,

सब कुछ ठहरा हुआ,

ये जल,

ये आकाश,

और ये धरा भी |

रुक जाओ कुछ देर यहीं,

प्रतिस्पर्धा और रफ़्तार को भूलकर,

इस लालसा को त्यागर,

महसूस करते जाओ बस,

इस नज़ारे के कण कण को |

मिलते सिरे गगन, नीर, भूमि के,

जहाँ एक रंग दूसरे में विलीन होकर भी,

अपना अस्तित्व नहीं खोता,

आसमान का नीलपन,

इस पर्वत पर चढ़ता है,

पर्वत का प्रतिबिम्ब,

इस जल में झलकता है,

जल का दर्शन,

ये बादल करता है,

ज़मीन का गेरुआ रंग,

इस जल में घुलता है,

जल का कतरा कतरा,

गेरू रंग लेकर भी,

निर्मल लगता है |

ये सब जुड़े हैं,

फिर भी भिन्न हैं,

एक दूजे में मिले हैं,

फिर भी इनकी,

पृथकत्वता बरकरार है |

ज़रा रुको दो पल यहीं,

महसूस करो कुछ देर ही सही,

और देखो इन आसमान, पहाड़,

ताल, और इस ज़मीन को,

एकाग्र मन से,

तो महसूस करोगे,

एक ही भाव,

ठहराव,

ठहराव,

ठहराव |

गति : जीवन : ठहराव

poetry, Souful

नूर

Source: Aakash Veer Singh photography

 नूर इस महताब का,

ज़र्रा ज़र्रा चमका रहा है,

अक्स इस शबाब का,

कतरा कतरा दमका रहा है,

इशारा इस आदाब का,

 कोई ख़ुशनुमा नज़्म गा रहा है,

नज़ारा इस बदली के हिजाब का,

पत्ते पत्ते को रिझा रहा है,

ऐसा लगता है मानो फ़लक ज़मीन से,

बेपन्हा मोहब्बत फरमा रहा है |

महताब : मोहब्बत : जज़्बात

दर्शन, inspiration, philosophy

प्रेम प्रसंग

photo credits – Aakash Veer Singh (Bilaspur, Chattisgarh)

आसमान की विशाल तश्तरी में,

भानु की रमणीय आभा सजी है,

पर्णों का हरा जालीदार रूप ही, इस वन की शालीन छवि है,

जब बिखरती है ये आभा,

आसमान से उभरती हुई,

और पहुँचती है इस ज़मीन पर,

छनकर पर्णों के जाल से,

ओजस्वी किरणों के रूप में,

तब प्रज्वलित हो उठता है कण कण,

पावन कनक के समान |

ये धूप छाँव का अनूठा मेल ही,

जोड़ता है उस आसमान को इस ज़मीन से,

और ये वन साक्षी बनता है,

इस प्रेम प्रसंग का |

धूप : छाँव : प्रकृति

inspiration, poetry, Souful

महताब

हर दिल की आरज़ू, हर मन की ज़ुस्तज़ू, है मोहब्बत | महताब जगाता है ये हर रात |

महताब

रात : मोहब्बत : जज़्बात