संसार के इस बाज़ार में,
लिए खड़े हैं तराज़ू सब,
हर रिश्ते का वज़न,
तुलता है जहाँ हर रोज़,
अपेक्षाओं और ज़िम्मेदारियों के पलड़े में,
बिकता है वक़्त,
कीमत होती हर जज़्बात की,
रत्ती रत्ती हो जाता है मिलना मुश्किल,
और
खोने को होते हैं हिस्से हज़ार |
उसी बाज़ार के एक कोने में,
बिना तराज़ू खड़ा है,
इंसानियत का रिश्ता हथेली में लिए,
हर वो बच्चा अनाथ,
जिसे ना कुछ मिलने की है लालसा,
और
ना ही कुछ खोने की बेबसी |
ये दर्जा है इन्सानियत का,
इस संसार के बाज़ार में,
कोई जगह ही नहीं इसकी |
बाज़ार : तराज़ू : रिश्ते