वो
फ़लक –
जो कभी हासिल ना हो सका,
मगर ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में,
सबसे आगे रहा हमेशा |
और ये ज़मीन –
जो हमेशा हमारी ही रही,
मगर हमारे साथ के लिए,
रज़ा मंदी का इंतज़ार करती रही |
इंसान को हमेशा,
कद्र और फ़िक्र,
नाक़ाबिल – ए – रसाई तोर प्यार की ही होती है |

वो
फ़लक –
जो कभी हासिल ना हो सका,
मगर ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में,
सबसे आगे रहा हमेशा |
और ये ज़मीन –
जो हमेशा हमारी ही रही,
मगर हमारे साथ के लिए,
रज़ा मंदी का इंतज़ार करती रही |
इंसान को हमेशा,
कद्र और फ़िक्र,
नाक़ाबिल – ए – रसाई तोर प्यार की ही होती है |
नूर इस महताब का,
ज़र्रा ज़र्रा चमका रहा है,
अक्स इस शबाब का,
कतरा कतरा दमका रहा है,
इशारा इस आदाब का,
कोई ख़ुशनुमा नज़्म गा रहा है,
नज़ारा इस बदली के हिजाब का,
पत्ते पत्ते को रिझा रहा है,
ऐसा लगता है मानो फ़लक ज़मीन से,
बेपन्हा मोहब्बत फरमा रहा है |
महताब : मोहब्बत : जज़्बात
हर दिल की आरज़ू, हर मन की ज़ुस्तज़ू, है मोहब्बत | महताब जगाता है ये हर रात |
रात : मोहब्बत : जज़्बात