दर्शन, philosophy, poetry

स्वीकृति

तालिका की सतह पर,ये हल्की गहरी रेखाएँ,कोई लम्बी, कोई छोटी,कोई पतली,कोई मोटी,कहीँ कटी,कहीँ रुकी,कहीँ बँधी,कहीँ खुली,कहीँ उठी,कहीँ झुकी,कहीँ दौड़ती,कहीँ लहराती,कहीँ मिलती,कहीँ जुदा होती,कहीँ चिन्ह हैँ,कहीँ दाग़ हैँ,कुछ मिटा सा है,कुछ छुपा सा है,कुछ बदलता है,कुछ स्थायी है,ना जाने क्या राज़ है इनमें,ना जाने क्या खुलासे हैँ,ना जाने क्या बातें हैँ,ना जाने क्या किस्से हैँ |जो भी है,वो यहीं है,इन्हीं रेखाओं में,भूत,वर्तमान, और भविश्य भी,काल,और पल भी,सम्पूर्ण,और अधूरा भी |ये स्वीकृति है,इस भाग्य की,कर्म की,और कारण की,प्रत्यक्ष के प्रमाण है,तर्क के विज्ञान है,विश्वास की,शंका की,उम्मीद की,हताशा की,वेदना की,संवेदना की,लाभ की,हानि की,स्मृति की,कल्पना की,इस जीवन के-क्षणभंगूर रूप की,स्वीकृति है |

दर्शन, inspiration, philosophy, Soulful

रंग

© tulip_brook

रंग ज़िन्दगी के कुछ ऐसे हैं,

कुछ फीके, कुछ गाढ़े,

कुछ उथले, कुछ गहरे,

कुछ निर्मल, कुछ उग्र,

कुछ शान्त, कुछ चँचल,

कुछ खामोश,कुछ गूंजते,

कुछ अधूरे, कुछ पूरे |

हर रंग एक जज़्बात उजागर करता है,

एक एहसास से जुड़ जाता है,

कभी उम्मीद बन जाता है,

कभी सबक बन जाता है,

कभी ख़्वाब बन जाता है,

कभी याद बन जाता है,

कभी चाहत बन जाता है,

कभी नफ़रत बन जाता है |

कोई इसे धर्म से जोड़ देता है,

कोई इसे कर्म से जोड़ देता है,

कोई इसे जंग का जामा पहना देता है,

कोई इसे शान्ति का प्रतीक बना देता है,

कोई इसे विजय के स्तम्भ पर सजाता है,

कोई इसे शिकस्त के खंडर पर बैठाता है,

कोई इसे संकुचित दायरे में बाँध देता है,

कोई इसे असीमता में घोल देता है,

कोई इसे उत्सव के रूप में मनाता है,

कोई इसे शोक में जताता है |

रंग एक कविता भी है,

रंग एक कहानी भी,

रंग एक आवाज़ भी है,

रंग एक मौन भी,

रंग शब्द भी है,

रंग निशब्द भी,

रंग एक तथ्य भी है,

रंग एक रहस्य भी |

रंग : ज़िन्दगी : सोच

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नीर

Source- Aakash Veer Singh Photography

इस नीर के रूप निराले हैं,

कभी बन जाता है ये एक बलखाती नदिया,

तो कभी एक शालीन सा तालाब,

कभी बन जाता है ये एक मदमस्त झरना,

तो कभी समुद्र में उठता हुआ कोई सैलाब,

कभी बन जाता है ये ऊष्ण का धुँदला धुआँ,

तो कभी सावन की घनघोर घटा,

कभी गिरता है ये बदली से यूँ,

टप टप इस धरा पर,

तो कभी ठहरता है दमकते मोती सा,

सर्द सुबह में खिले किसी पँखुरी पर,

कभी बन जाता है ये तृष्णा में ओक,

तो कभी गदगद होते हुए ह्रदय का शोक,

झलक जाता है इन नैनों के सिरों से,

इस तरह जैसे हो गुमसुम सी धरा कोई,

जिसका स्रोत और गंतव्य दोनों ही,

एक गहरा उनसुलझा रहस्य हो कोई |

नीर : स्रोत : गंतव्य