inspiration, Soulful

नूर – ए – कमर

तारीकी का आलम था,

बसारत मुबहम हुई,

इक़तिज़ा थी वज़ाहत की,

इंतिज़ार तवील-उल-मुद्दत का,

अलबत्ता रजा की आग उठी,

गुफ़्तुगू हुई क़ायनात से,

और फ़िर ये नज़ारा दिखा –

ज़र्रा ज़र्रा तस्दीक़ करता मिला,

नूर – ए – कमर की इंतिहाई की,

रेज़ा रेज़ा फ़िर तमाम हुआ,

ये ख़ुद – सर सख्त – अँधेरा,

और रोशन हुआ ये ज़मीर फ़िर,

मुसलसल वक़्त के लिए |

प्रदीप्ति

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Sooty sky

The dark thoughts of agony,
Seer in the cauldron of hate,
And the fuel of greed and pride,
Keep its flames rising,
Soaring to the upper skies,
Crossing layers innumerable,
Touching the unfathomable ether,
To smudge the ashes of it’s burn,
Obscuring the moon and stars,
Creating a dark sooty sky,
Like a moribund place,
Filled with the same loathe,
That this heart carried for ages.

tulipbrook #emotions

Pradeepti

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सुकून

आलम रंज का था,

तोहमत लगी,

शिकायत हुई,

‘इताब बेहिसाब था,

चीखें उठी,

दा ‘वे हुए |

मगर,

ना जाने क्यूँ,

गुरूर के इस शोर में भी,

कहीं से अचानक,

बे – हिसी ख़ामोशी छा गई,

और इतनी नफ़रत के बीच भी,

ये दिल पुर – उम्मीद रहा,

कि ये वक़्त भी गुज़र जाएगा,

हर ज़ख़्म धीरे धीरे भर जाएगा |

inspiration

मिट्टी

गीली मिट्टी –

सही नमी,सही कण,

का आकार लिए,

घूर्णन की क्रिया से गुज़री,

एक निश्चित गति में,

हथेलियों का सहज संतुलन,

लगातार यूँ ही बनाकर,

सब्र और एकाग्रता के साथ,

भूमि की विशाल ओक तैयार की,

जिस्में जमाया हर कच्ची वस्तु को,

मिला सहारा भूमि का,

सहारा एक दूसरे के,

ताप की अग्नि से गुजरने के लिए,

कई घंटों तक यूँ ही |

कुछ इंतज़ार के झुलसते पल,

लाये एक सौगात नई-

अपना रंग बदलते हुए,

लालिमा निखार की,

ताप से निकले प्रचंड स्वरुप की,

बनने को तैयार,

घड़ा ठन्डे जल का,

कुल्हड़ गर्म चाय का,

तवा नर्म रोटी का,

कढ़ाई कड़क मसालों की,

हांडी में आने लगी,

मीठे चावल की महक,

थाल पर सजने लगी,

पकवानों की जोड़ी,

दाल, तरकारी,

रोटी, चावल,

घी, और गुड़,

अचार, पापड़,

चटनी,और छास,

मिसरी की डली,

पानी में घुली,

मिट्टी का स्वाद रमा,

भोजन के हर कण में,

और महक इस धरती की,

ज़िंदा रही हर निवाले में |

दर्शन, philosophy, Spiritual

जल

ग्रीष्म ऋतु की उष्ण से,

माटी की ठंडक तक,

एक सम्पूर्ण यात्रा है,

इस जल की |

तप की अवधि,

और शीत का समय,

दोनों ही अनिवार्य है,

जल के अस्तित्व की,

सार्थकता और प्रभुता को,

स्थापित करने के लिए,

जन्म मृत्यु के,

इस अनवरत चक्र में |

प्रदीप्ति

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दर्शन, Spiritual

मोक्ष

काल के ना जाने कौन से क्षण में,
ये प्रक्रिया आरम्भ हुई-
चिदाकाश के दायरे ओझल होने लगे,
रिक्त होने लगा स्मृतियों का पात्र,
रिसने लगे उसमें से भावों के रंग,
घुलने लगे वो यूँ हौले हौले,
महाकाश की अपरिमितता में,
किसी अज्ञात विशाल कुंड में |
ये ही यात्रा है,
आत्मान के ब्रह्मन् से युति की |
ये ही यात्रा है,
मोक्ष की |

प्रदीप्ति

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दर्शन

जीवन

तरु के देह पर,
ये अनगिनत व्रण,
और छोटी बड़ी गाँठेँ,
उजागर करती हैं,
एक लम्बी कहानी,
अस्तित्व की |
हर एक ग्रंथि,
बयान करती हैं,
इसके संघर्ष की दास्तान |
ना जाने कितने मौसम देखे,
ना जाने कितने पल जिए,
अगर अवलोकन करें,
धैर्य के साथ,
इसके हर सूक्ष्म भाग का,
तो नज़र आएगी स्पष्ट रूप में,
हर एक अनुभूति,
इसके जराजीर्ण वजूद की |

प्रदीप्ति

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दर्शन

अहम् की अपूर्ण यात्रा

Image source : internet

अहम् की अपूर्ण यात्रा

एक सुर्ख सिंदूरी एहसास लिए है ये रैना,
जैसे अतीत की स्थिर स्मृतियाँ,
अस्थायी सा जंग लिए हो कोई,
और वर्तमान के ये गतिशील जज़्बात,
पुलकित भाव उजागर कर रहें हो भीतर |

जैसे जैसे मेरी सतह निस्तेज होती गई,
आतंरिक चुभती विषकत्ता को हटाती हुई,
वैसे वैसे वो प्रकट करती गई,
एक परत कोमल निश्चयात्मकता की |
ये भंजन ही वास्तविक उन्मुक्ति है,
‘अहम्’ की, इस प्रतिबंधित जीवन की बेड़ियों से |

ये अवखंडन अब एक आनंदमयी अनुभव होने लगता है,
और पुर्ज़ा पुर्ज़ा यूँ बिखरना,
स्वीकृति भाव को उत्पन्न करता है,
जो ‘अहम्’ को सूत्र के उद्गम में,
विलीन होने के लिए,
प्रोत्साहित करता रहता है |

मगर कालचक्र का ये प्रभाव,
‘अहम्’ को दोबारा समावेश में लेता है,
भौतिकता को अनुभव करने के लिए,
पुनः किसी काल में जन्म लेने के लिए,
किसी और रूप और नाम के साथ,
एक नूतन अस्तित्व में,
जो फिर से बाँध देगा,
इस जीवन को,
एक सीमित अवधि के लिए,
भौतिकता के जटिल पंक में |

मगर हर बार ‘अहम्’ पहुँचेगा इस दायरे के सिरे पर,
अभिज्ञता के आयाम से दूर होकर,
एक अज्ञात मक़ाम में प्रवेश करके,
जो इस भौतिक अवधारणा के परे होगा,
पुनः वही सुर्ख सिंदूरी एहसास दिलाता हुआ,
जैसे इस रात्रि में हुआ है |

प्रदीप्ति

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