poetry

सावन

सावन में जब जब मेघ बरसते हैँ,
नैनों के समंदर में आकर बसते हैँ,
वो अधूरे से ख्वाब,
जो अब लहरों की तरह उचकते हैँ,
ज़िन्दगी की नाव इन्हीं पर चलती है,
कभी हिलती, कभी उछलती,
कभी झूलती, कभी सँभलती,
मंज़िल की चाह में हर तूफ़ान से लड़ती |

सावन

दर्शन, philosophy, poetry

मुखौटे

ना जाने कितने ही चेहरे,
ना जाने कितनी ही पहचान हैं,
इस दुनिया के रंगमंच पर,
ना जाने हर किरदार,
पहनता है कितने ही मुखौटे |
कभी मुखौटा लहराती ख़ुशी का,
भीतर अपने ग़म का सागर लिए,
कभी मुखौटा ग़म के बादल का,
बिन अश्कों की बारिश लिए,
उसी मुखौटे से –
किसीके सामने हँसता है,
किसीके सामने रोता है,
किसीसे मुँह फेरता है,
किसीकी ओर ताँकता है,
कभी आक्रोश में भी ख़ामोशी लिए,
कभी प्रेम में अविरल बोलता हुआ,
कभी निराशा में कोरे लब लिए,
कभी उम्मीद में जगमगाती मुस्कान लिए |
हर इंसान पहनता मुखौटे हज़ार,
कुछ बदलते हैं पल पल,
तो कुछ उम्र भर भी नहीं,
कुछ अपनों के लिए,
तो कुछ होते गैरों के लिए,
कुछ सिर्फ़ एक सच के लिए,
तो कुछ हर तरह के झूठ के लिए |

Soulful, Sufi

दूरी – नज़दीकी

वो

फ़लक –
जो कभी हासिल ना हो सका,
मगर ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में,
सबसे आगे रहा हमेशा |

और ये ज़मीन –
जो हमेशा हमारी ही रही,
मगर हमारे साथ के लिए,
रज़ा मंदी का इंतज़ार करती रही |

इंसान को हमेशा,
कद्र और फ़िक्र,
नाक़ाबिल – ए – रसाई तोर प्यार की ही होती है |

inspiration, philosophy, poetry

इतिहास

इतिहास ये –
गेरुआ सा,
धुँधला सा,
घटता हुआ |
ईमारतें टूटी फूटी सी,
दीवारें भी दरारों भरी,
धरोहर फिर भी मज़बूत,
स्तम्भ ये अडिग खड़े हुए \
पत्थरों पर जमी वक़्त की काई,
ज़मीन पर पनपती प्रकृति,
ये संतुलित सा आकार,
ना अब तक बंजर हुआ,
ना ही बसेरा बना |
प्रदीप्ति

दर्शन, inspiration, philosophy, poetry

सन्देश

© tulipbrook @Kanhan Maharashtra

बादल के लिफ़ाफ़े में छुपाकर,

आज रोशनी भेजी है,

इस सूने तन्हा आसमान ने |

और डाकिया बनी है,

मदमस्त सी ये फ़िज़ा,

ताकि मीलों के ये फ़ासले,

आसानी से तय हो सके,

मगर शुल्क लगाया इस मौसम ने,

कुछ हिस्सेदारी अपनी भी माँगी,

ले ली कुछ किरणें फिर,

और बाकी वहीं रहने दी |

इस प्यारी सी सौगात की,

अभिग्राही बनी है ये धरा,

जो इस सन्देश को पाकर,

प्रज्वलित हो उठी,

स्वर्णिम सी हया लिए |

philosophy, poetry, Soulful

स्पर्श

उठा लेती हूँ उन्हें भी,
बड़े ही स्नेह से,
जिन्हें खुदके प्रियवर ने त्याग दिया,
मालूम है मुझे ये सच्चाई,
इस स्नेह से ये फिर घर नहीं जा पाएँगे,
मगर कुछ क्षणों का कोमल स्पर्श,
इन्हें सुकून ज़रूर देगा,
नश्वरता को आलिंगन में लेने के लिए,
स्वैच्छा से, मधुरता से,
मिट्टी में विलीन होना भी आवश्यक है,
इस काल चक्र के संचालन के लिए,
फिर उजागर होने के लिए,
किसी और रूप में,
कोई और अस्तित्व लिए,
मगर सिर्फ़  प्रेम से,
जन्म से मरण तक,
फिर जन्म लेने के लिए |

दर्शन, philosophy, poetry

अवशेष

Photo clicked by me- Adasa Temple, Maharashtra

अवशेष

एक अस्तित्व था,
जिसका
आकार भी,
रूप भी,
छवि भी,
औचित्य भी,
जो
काल बध्य होकर,
पूर्ण था,
मगर
क्षण क्षण घटता गया,
उसका आकार,
उसका रूप भी,
उसकी छवि,
उसका औचित्य भी,
और आज जो प्रत्यक्ष है,
वो सिर्फ़ अवशेष हैं,
अधूरी कहानी से,
किसीके इतिहास के,
जो सिर्फ़ तर्क वितर्क,
और अनुमान के दायरे में,
सीमित रहकर,
एक शोध का विषय बन जाएँगे,
मगर
क्या कभी भी,
इस अवशेष का,
सत्य हम जान पाएँगे?

दर्शन, philosophy

Shadow

#mygarden

A momentary truth,
Of an eternal reality,
And a constant juggle,
Between perception and memory.
A shadow gives a glimpse,
Of the fleeting nature,
Of this existence,
Nothing remains forever,
In the limited domain,
Of this physical perception,
Yet its essence stays,
In some form or the other,
In the boundless realm,
Of this metaphysical memory.

दर्शन, inspiration, philosophy, poetry

वक़्त

वक़्त पानी सा बहता गया,
जीवन की नाव चलती गयी,
कई छोर छूटते गए,
किनारे भी धुंदले होते गए,
और अब ये मंज़र है,
कि गहराई रास आने लगी है,
अब ना किसी छोर की तमन्ना,
ना ही किसी किनारे की आस बची है |

inspiration, philosophy, poetry

समय

Image Source – internet

समय की गाड़ी चलती रही,
पलों के कई डब्बे लिए,
मुलाक़ातों के स्टेशन आते रहे,
सफ़र ये जीवन का,
यूँही बस चलता रहा |
अब गाड़ी तो चली गई,
डब्बो को अपने संग लिए,
स्टेशन भी अब छूट गए,
बस अब यादों की ये पथरियाँ बाकी हैं |