दर्शन

पुरुषार्थ

कलयुग की सच्चाई –
अर्थ एवं काम पुरुषार्थ में मग्न मनुष्य जाति,
धर्म पुरुषार्थ का तिरस्कार करती हुई,
अपने अंतिम लक्ष्य – मोक्ष पुरुषार्थ को अज्ञानता के माया जाल में भ्रमित होकर, संपूर्णतः भूलती हुई,
अपने ही पतन की तैयारी कर रही है |
ये केवल किसी आध्यात्मिक प्रवचन का विषय नहीं है,
ये मनुष्य जति के अस्तित्व का, उसकी चेतना का विषय है |
ज्योतिष की दृष्टि से –
तकनीकी भ्रम की माया का समय है |
राहु छाया गृह का प्रचंड प्रभाव है,
जो कभी ना मिटने वाली लालसा,
और असीमित अंधकार में सब कुछ निगलने वाली प्रवृत्ति को प्रबल करता जा रहा है |

अगर अब भी धर्म को धारण नहीं किया, तो मनुष्य जति का सर्वनाश होगा |

  • प्रदीप्ति

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