कभी कभी ऐसा महसूस होता है की इबादत और दुआ में कुछ कमी रह गई, जो ये मोहब्बत नसीब ना हुई | फिर लगता है कि शायद मोहब्बत का मुक़ाम हर कोई पा सकता | खैर कोई बात नहीं, मुक़ाम ना सही, सफ़र तो तय कर ही सकते हैँ |

कभी कभी ऐसा महसूस होता है की इबादत और दुआ में कुछ कमी रह गई, जो ये मोहब्बत नसीब ना हुई | फिर लगता है कि शायद मोहब्बत का मुक़ाम हर कोई पा सकता | खैर कोई बात नहीं, मुक़ाम ना सही, सफ़र तो तय कर ही सकते हैँ |
ये इश्क़ भी महताब सा है,
जो इस अँधेरी ज़िन्दगी में,
अपने नूर से एक जगमगाहट तो ले आता है,
मगर जब इसे पाना चाहो,
तब हर बार छूटता सा चला जाता है,
जैसे कोई तिलस्मी छल हो,
जो पास होकर भी साथ नहीं होता,
बस एक दिलकश एहसास बन कर,
वजूद बना लेता है अपना,
इस दिल के दरमियाँ,
और ज़ख्म -ए -जिगर देकर,
अपने निशान छोड़ जाता है,
ताउम्र के लिए |
इश्क़ : महताब : ज़िन्दगी