philosophy

श्रृंगार और नारीवाद

श्रृंगार से कोई अबला या सबला नहीं होता | और रही नारीवाद की बात, वो तो आजकल फैशन बन गया | अपनी कोई भी बात ऊपर रखनी हो तो औरतें इसी ब्रह्मास्त्र का इस्तिमाल करती हैँ | मेरा तो ये ही मानना है कि हर व्यक्ति एक इन्सान के रूप में ही अपना जीवन बिताए | और जो कुदरती अंतर है नारी और पुरुष में उसका सम्मान करें और अपने अपने कार्य करें | सामाजिक दायरे में भी रहना ज़रूरी हैँ | हाँ, कोई कुप्रथा हो तो उसका पुरजोर विरोध करना चहिए | मगर श्रृंगार गलत नहीं है और नारिवाद का सही जगह उपयोग भी |

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