भोर की साफ़ सफाई,
चिड़िया को दाना देना,
अल्पना के आकार बनाना,
सूप से धान का छिलका निकालना,
दही को हांडी में बिलोना,
पैरों पर आलता लगाना,
केशों का गजरा बनाना,
दोपहर को सहेलियों से बातें,
सुसताती औरतें घर के काम के बाद,
शाम की चाय और फेरीवाला बाज़ार,
दोनों का आनंद उठाते पुरुष,
ऐनक और पुस्तक लिए बुज़ुर्ग,
हल्ला करते बच्चे,
मंदिर की घंटी की आवाज़,
और रजनी का अखंड दीप,
ना जाने कितने ही ऐसे काम,
होते रहते हैं सुबह शाम,
इसी चौखट पर,
जो बन जाते हैं एक अरसे बाद,
इस चौखट के किस्से |
प्रदीप्ति